गुस्सा और चिंता- मुख्य कारक जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं
1. केवल आज के दिन में क्रोध नहीं करूंगा-
क्रोध हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?
गुस्सा विवेक का अंत और अनर्थ की शुरुआत है। क्रोध मनुष्य को मदिरा की भाति विचार शून्य तथा पक्षाघात की भांति शक्तिहीन कर देता है| रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध मानसिक शांति को भंग करने वाला मनोविकार है। क्रोध की अवस्था में मस्तिष्क का, शरीर की आपातकालीन क्रियाओं पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता है। तथा शरीर में एक अजीब किस्म की उत्तेजना व्याप्त हो जाती है। यह उत्तेजना ही मनुष्य को विवेक हीन कर गलत कार्य करने को विवश करती है।वैसे तो ईर्ष्या, घृणा, द्धेष आदि सभी बुरे भाव मनुष्य की सेहत के लिए घातक है, किंतु स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाए, तो गुस्सा ही आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है। जिस तरह तूफान का प्रबल वेग बाग-बगीचे को झकझोर कर उनका सौंदर्य नष्ट कर देता है, उसी तरह क्रोध का तीव्रतम आवेग आदमी के तन-मन में तूफ़ान पैदा कर उनसे कोई अनर्थ करवा डालता है। क्रोध की अवस्था में मनुष्य के भीतर एक प्रचंड वेग समाहित हो जाता है, लेकिन समय के साथ क्रोध की समाप्ति पर आदमी शराबी की भांति स्वयं को अत्यंत कमजोर और निढाल पाता है। यह आवेश की अवस्था में किए गए अपने अनुचित कार्य पर लंबे समय तक पश्चाताप करता रहता है। यह कथन सत्य है कि गुस्सा बेवकूफी से शुरू होकर पश्चाताप पर खत्म होता है।
बरहाल हम गुस्से से शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावो पर विचार करें, तो सर्वप्रथम यह स्पष्ट हो जाता है कि क्रोध मूलतः एक मानसिक रोग है, जो धीरे-धीरे अपने दुष्प्रभाव शरीर पर छोड़ता है। क्रोध की अवस्था में शरीर में कई प्रकार के विषो की उत्पत्ति हो जाती है, जो शरीर के आंतरिक अंगों को घातक नुकसान पहुंचाते हैं।
चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार क्रोध करने पर शरीर की बाहरी व भीतरी क्रियाए बुरी तरह प्रभावित होती है, जिससे शरीर में पैदा होने वाले आवश्यक रसायनों का अनुपात गड़बड़ा जाता है। गुस्से से शरीर की मांस-पेशियां उत्तेजना के कारण एकदम तनाव में आ जाती हैं। मुख्यता: हाथ-पैर की मांसपेशियों अकड़ जाती हैं और फड़कने लगती हैं। इसी तरह चेहरे में भी खिंचाव आने लगता है, जो शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। लाल होकर तमतमाने लगता है।
क्रोध की अवस्था में जो क्रिया सर्वाधिक प्रभावित होती है, वह है श्वसन क्रिया। दरअसल क्रोध के आवेग के कारण शरीर में ऊर्जा का अभाव होने लगता है। इसे पूरा करने के वास्ते स्वसन क्रिया को अधिक तेजी से काम करना पड़ता है। फेफड़ों पर कार्य का अनावश्यक रूप से अतिरिक्त बोझ पड़ता है और उन्हें अधिक कार्य करना होता है। इस प्रकार श्वसन क्रिया की गति और दर एकाएक बढ़ जाती है। इस दौरान शरीर अधिक मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण करता है, जो ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। यदि ऐसे समय शरीर में उर्जा के अभाव की पूर्ति अन्य स्थानों द्वारा ना हो पाए तो, रक्तचाप, चक्कर आना आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है।
गुस्सा दिल् की बीमारी के लिए भी काफी सीमा तक उत्तरदाई होता है। क्रोध की अवस्था में दिल की धड़कन सामान्य से कहीं अधिक बढ़ जाती हैं, जिसके कारण शरीर में रक्त संचार की गति भी असामान्य रूप से तीव्र हो उठती है। हृदय, धमनियों व् रक्त वाहिनीयों को अधिक कार्य करना पड़ता है।
क्रोध की स्थिति में खून की सर्वाधिक मांग मस्तिष्क की तरफ से आती है। रक्त की आपूर्ति में लीवर भी ह्रदय की मदद करता है। ऐसी स्थिति में रक्त में ऑक्सीजन का अनुपात बढ़ जाता है और अधिक ऊर्जा का निर्माण होता है। हृदय पर पड़ने वाला यह अतिरिक्त भार रक्तचाप सरीखे रोगों को उत्पन्न करता है। कभी-कभी ऐसी स्थिति में हर्ट-अटैक या हर्ट फेल हो जाता है।
अक्सर देखा गया है कि क्रोधी स्वभाव के लोगों का हाजमा ठीक नहीं होता। इसका मूल कारण यह है कि गुस्से की अवस्था में पेट और आंतों की क्रियाशीलता लगभग समाप्त हो जाती है। क्रोध शरीर में अनेक व्याधियों व आंतरिक रोगो को तो जन्म देता ही है, साथ ही यह मनुष्य के सौंदर्य को भी नष्ट करता है। शरीर में जहां-तहां नीली नसें उभर आती है, चेहरे पर पर असमय झुर्रियां पड़ जाती है, आंखों के नीचे काले निशान पड़ जाते हैं।
15 मिनट क्रोध में रहने से मनुष्य के शरीर से उतनी ऊर्जा नष्ट हो जाती है। जितने में वह आसानी से साधारण अवस्था में 9 घंटे तक कड़ी मेहनत कर सकता है। क्रोध के समय आंखों की दृष्टि सीमा में फैलाव आ जाता है, जो नेत्र-ज्योति के लिए घातक है। गुस्से मे खाया गया भोजन कभी नहीं पचता। इससे पेट दर्द बदहजमी और अन्य रोग बढ़ते जाते हैं।
गुस्से से होने वाली अन्य बीमारियां-
👉माइग्रेन
👉अल्सर एवं एसिडिटी
👉कोलेस्ट्रोल की वृद्धि
👉मधुमेह एवं जोड़ों में सूजन
👉मांसपेशियों में खिंचाव, स्पांडिलाइट्स
👉शरीर की प्रतिरक्षा
प्रणाली का कमजोर पड़ना
गुस्सा आने के कारण-
कुछ परिस्थितियां गुस्सा आने की प्रवृत्ति को उभारती हैं- जैसे
👉जब आपके आसपास के लोग आप की अपेक्षा अनुसार व्यवहार नहीं व्यवहार नहीं करते हैं।
👉जब कोई व्यक्ति आपकी इच्छा पूर्ति अथवा आपके ध्येय की प्राप्ति में आड़े आ जाता है।
👉जब कोई व्यक्ति आपकी बातों से असहमत होकर आपका विरोध करता है।
👉जब कोई व्यक्ति आपसे अनुचित व्यवहार करता है, आपका अपमान करता है, आपके सामने या पीठ पीछे आपका बुरा- भला कहता है।
👉जब कोई व्यक्ति आप की आवश्यकता, सुविधा और समस्याओ को नहीं समझता है।
👉जब लोग आप से किए वादों एवं जवाबदारी के प्रति लापरवाही बरतते हैं।
👉जब कोई व्यक्ति आपको धोखे में रखकर आपसे पैसे ऐंठ लेता है या वस्तुओं की गुणवत्ता, विश्वसनीयता के बारे में आपको धोखा देता है।
👉जब आपके मातहत आपके द्वारा निश्चित मापदंड पर खरे नहीं उतरते हैं और फल स्वरुप आप के निर्णय प्रभावित होते हैं।
👉जब कोई व्यक्ति आपके कार्यों में अड़ंगे लगाता है।
गुस्से को नियंत्रित
करने के अल्पावधि उपाय-
1. गुस्से के आते ही तुरंत वार्तालाप रोक देना चाहिए।
2.वाद विवाद को आगे ना बढ़ाए।
3.यदि चुप रहना मुश्किल हो तो तुरंत वह स्थान छोड़ देना चाहिए।
4. एक गिलास ठंडा पानी पिए या अपनी आंखें बंद कर कर कही बैठ जाएं।
5. 100 से 1 तक गिनती याद करें या अपने किसी मंत्र का उच्चारण कर गुस्से को ठंडा होने दें। ओम का जाप सर्वोत्तम होता है।
6.कहीं खुली हवा में जाकर तेज चले या किसी खेल में मन लगाएं।
7.गुस्से के कारण होने वाले परिणामों को सोचें।
8.यह सोचे कि मन की शांति और स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा छोटे-छोटे कारणों द्वारा इस अमूल्य खजाने को नष्ट ना होने दें।
गुस्से को नियंत्रित
करने के दीर्घावधि उपाय
👉नियमित योगासन करें
👉मौन धारण करना और वाणी पर संयम
👉ध्यान साधना करना
👉रोजमर्रा के कामकाज में विनम्रता का व्यवहार
👉अंह(Ego) को नष्ट करके क्रोध पर विजय पाना
👉ऐसी आदतों को बढ़ाया जाए जो कि हमारी सहनशीलता को बढ़ावा दें जिससे हम अपशब्द, अन्याय या अपमान आदि परिस्थ्तियो में उत्तेजित न हो।
👉सात्विक अन्न, जैसे- फल, दूध, सब्जियां आदि का उपयोग करें
👉अच्छा साहित्य पढ़ने की आदत डालें
👉 अच्छे लोगों की संगत करें, 'सत्तसंग में भाग ले
👉प्रकृति के निकट रहने का अधिक से अधिक प्रयास करें
👉सादा जीवन, उच्च विचार की जीवनशैली अपनाएं
👉दूसरों को क्षमा कर सकें इस आदत को बढ़ाएं
👉अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें जिससे हमेशा चुस्त-दुरुस्त रह सके
👉सतत आत्मावलोकन का प्रयास करें। गुस्सा आने के बाद अपने आप से ही पूछे कि 'मैं क्यों नाराज हुआ?' 'क्या मेरा नाराज होना वास्तव में आवश्यक था?', 'गुस्सा होने से आखिर मुझे क्या मिला?'
2.केवल आज के दिन मैं चिंता नहीं करूंगा
चिंता करने से कोई लाभ होने के बजाय उल्टा हानि होती है। चिंता अनेक, शारीरिक और मानसिक रोगों को जन्म देने का कारण बनती है। चिंता करने से कभी कोई समस्या आज तक हल नहीं हुई है और ना भविष्य में कभी होगी। इसलिए चिंता ता चिता के समान कहा गया है। चिता की अग्नि तो मृत शरीर को ही जलाती है, जबकि चिंता आप के जीवित तन और मन को भी जलाती है।
समस्या से संबंधित सभी तथ्यों को पक्षपातहीन होकर एकत्रित करिए। उसके सभी पहलुओं पर विचार करें तथा मित्रों एवं संबंधित व्यक्तियों और विशेषज्ञों से सलाह लेकर उसके हल् की एक तर्कपूर्ण क्रमिक योजना बनाए तथा उसे हल करने में जुट जाइए। जब कभी भी आपको चिंता सताने लगे तो आप किसी सृजनात्मक कार्य में लग जाइए। अपने को उपयोगी कार्यों में अधिक-से-अधिक व्यस्त रखिए ताकि बेकार के विचार दिमाग को परेशान ना करें।
ईश्वर से आप ऐसी शक्ति पाने के लिए प्रार्थना करें जिनसे आप समस्याओं पर विजय पा सके और उन परिस्थितियों या हालातों को सहन करने की शक्ति के लिए प्रार्थना करें, जिन्हें बदला नहीं जा सकता हो। इससे आपका शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहेंगे।
3. केवल आज के दिन मैं अपना कार्य एवं ईमानदारी से करूंगा
जो व्यक्ति अपने काम ईमानदारी से करते हैं वे भय और चिंताओं से मुक्त रहते हैं। वे समाज में प्रतिष्ठा और इज्जत पाते हैं और उन्हें समाज में आदर मिलता है। आप सत्य के जितने करीब होते हैं उतना ही आप ईश्वर के नजदीक होते हैं।बेईमानी से कमाई करने वाले लोगों को क्षणिक सुख भले ही मिल जाए पर बाद में उन्हें पछताना ही पड़ता है। आप खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाएंगे, फिर बेईमानी से धन उपार्जन किसके लिए? यदि आप संतान के लिए धन इकट्ठा कर रहे हैं तो दो बातें हमेशा ध्यान रखें।
'पूत सपूत तो क्यों धन संचय
पूत कपूत तो क्यों धन संचय'
आज आदमी आध्यात्मिक सुख के लिए नहीं, भौतिक सुखों की चाह में जी रहा है और बेईमानी, झूठ, अनाचार व भ्रष्टाचार का सहारा लेकर धन कमाने में लगा है। परिवार के लोग, जिनके लिए आप जिंदगी भर बेेईमानी से कमाई कर रहे हैं, बुढ़ापा आने पर वह आप का सहारा ना बन,धन के लिए आपके दुश्मन बन जाते हैं और धन संपत्ति के लिए एक-दूसरे के खून के प्यासे बन जाते हैं। फिर बेईमानी क्यों करें? ईमानदारी से जीविकोपार्जन कर सुखी एवं आनद पूर्ण जीवन बिताइए और ईश्वर के कृपा-पात्र बनीए।
4. केवल आज के लिए मैं ईश्वर कृपा का भार मानूंगा
हर दिन की शुरुआत, परमात्मा और उन देवी-देवताओं को, जिन पर आप विश्वास करते हैं, धन्यवाद दीजिए। ईश्वर ने प्रकृति के माध्यम से आपको बहुत कुछ दिया है उसके लिए कृतज्ञता का भाव रखिए। आनंद व प्रसन्नता से भरी आभार की भावना आपके अंदर एक नया उत्साह और आत्मविश्वास भर देगा जो आपके जीवन की राहों में आनंद और सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा। यदि जीवन में असफलता या दुख आए तो भी मन में यह भाव रखिए कि परमात्मा ने इन्हें आपके लिए भेजा है।
5. केवल आज के दिन में जीव मात्र से प्रेम व आदर का भाव रखूंगा
इस सिद्धांत में संपूर्ण प्राणियों या जीव धारियों के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना एवं अहिंसा भाव निहित है। महावीर, गौतम बुध एवं महात्मा गांधी ने अहिंसा का दर्शन सिखाया है। सभी पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े, पेड़ पौधे भी हमारे सामान पीड़ा और दर्द का एहसास करते हैं। अतः सभी के प्रति करुणा और दया करना चाहिए। हम सभी में परमपिता परमात्मा की ऊर्जा का प्रभाव हो रहा है। पशु-पक्षियों की रक्षा करने का संकल्प लीजिए।
Nice article on Anger
ReplyDeleteVery nice
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