I am curious by nature and some question naturally arises in my mind, I try to find the answer in available sources and mould it using my logic. Here I will share the knowledge which I have gained, and other interesting things which are worth sharing.I am not a professional writer so there may be mistakes in the articles, please consider this while reading.
Thursday, 29 June 2023
जीवन के सभी सुखों का एक मंत्र
Tuesday, 27 June 2023
कामवासना को ताकत बनाओ -
कामवासना को ताकत बनाओ
Saturday, 24 June 2023
मन को खाली करना जानो
मन को खाली करना जानो - Clear Your Mind | Empty Your Mind
दोस्तों हमारा मन कभी भी विचारों से खाली नहीं राहत। हमारे मन में हमेशा विचार चलते रहते उठते -बैठते ,खाते-पीते हमारा मन कभी भी विचारों से खाली नहीं राहत। लेकिन क्या कोई ऐसा तरीका है जिसे की मनके विचारों को रोका जा सके. हमारे मन को विचारों से खाली किया जा सके. आज की कहानी से आप बहुत ही सरल तरीके से समझ पाओगे की मन को कैसे खाली किया जाए और मन को अपने वाश में कैसे किया जाए तो चलिए शुरू करते हैं।
एक गुरु का एक शिष्य बहुत ही गहन ध्यान कर रहा था लेकिन उसका ध्यान नहीं लग रहा था. उसका मन हमेशा विचारों से भरा राहत, उसने अपने मन को खाली करने की बहुत कोशिश की लेकिन उसकी सारी कोशिश नाकाम हो चुकी थी। तब वो अपने गुरु के पास गया और उसने अपने गुरु से कहा- गुरुदेव मेरा मन हमेशा विचारों से भरा राहत है। मेरा ध्यान एक जगह नहीं लग पाता, जब मैं ध्यान करने बैठता हूं तो मेरा ध्यान दूसरी चीजों पर पहुंच जाता हूं, फिर तीसरी बार, फिर चौथी पर. ऐसे करते-करते मेरे मन में हजारों विचार चलते रहते हैं और यह कब होता है मुझे पता भी नहीं चला. बहुत देर बाद मुझे इस चीज का एहसास होता है की मैं क्या करने बैठा था और क्या कर रहा हूं.
गुरुदेव मैं अपने मन को विचारों से खाली कर देना चाहता हूं, मैं चाहता हूं की मेरे मन में एक भी विचार ना आए. जब मैं चाहूं मेरे मन में विचार उत्पन्न हो. गुरु ने कहा किसी भी समस्या का समाधान तब निकलता है जब हम समस्या की जड़ तक पहुंचते हैं, समस्या को ठीक से समझते हैं और उसको जानते हैं. जीस मन को तुम खाली करना चाहते हो क्या तुमने इस मन को थोड़ा बहुत भी जाना है. गुरुदेव मन को जान्ने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं जितना जानना चाहता हूं यह मन उतना ही रहस्मयी होता जाता है।
गुरू ने कहाँ जाओ एक घड़े को छोटे-छोटे पत्थरों से भरकर लेकर आओ. फिर शिष्य उसे घड़े में छोटे-छोटे पत्थर भर के लेकर आता है और गुरु के पास रख देता है. गुरु ने कहा इस घड़े को
तुम अपना मन समझो और इस घड़े में पड़े पत्थरों को अपने विचार ,अब इस घड़े में और पत्थर डालना शुरू करो। घड़ा पहले से भरा हुआ था तो थोड़े से ही पत्थर डालने के बाद वह पत्थर नीचे गिरने लगे तब गुरु ने कहा - अब ध्यान से देखो अब घड़े में पत्थर नहीं समा रहे हैं बल्कि वह नीचे गिर रहे हैं, क्योंकि यह भर गया.शिष्य तुरंत गुरुदेव से कहा गुरुदेव मैं समझ गया की आप क्या बताना चाहते हैं, आप बताना चाहते हैं की हमें अपने मन को विचारों से खाली कर देना चाहिए। गुरु मुस्कुराने लगे और गुरु ने कहा पहले पुरी बात समझ लो उसके बाद मन को खाली कर देना। गुरु ने कहा हमारा मन इस घड़े के बिल्कुल उल्टा है घड़े को तुम पत्थर से भर सकते हो लेकिन मनको विचारों से नहीं भर पाओगे ,मन हमेशा खाली ही राहत है. गुरुदेव मैं कुछ समझ नहीं का रहा हूं, मन अगर हमेशा खाली राहत है तो हमें मन को खाली करने की क्यों जरूर पड़ती है. मन खाली करने के क्या आवश्यकता। गुरु ने कहा इस घड़े से सारे पत्थर को एक-एक करके बाहर निकाल दो.
शिष्य ने ऐसा ही किया, एक-एक करके पत्थर निकालना शुरू किया, अंत में वो घड़ा खाली हो गया. गुरु ने कहा देखा तुमने एक-एक पत्थर को बाहर निकाला तो वो घड़ा खाली हो गया. अब तुम इस खड़े में कोई भी पत्थर डाल सकते हो, दूसरे पत्थर भी डाल सकते हो या इन्हीं पत्थरो को दोबारा डाल सकते हो ,आधा भर सकते हो या फिर इसे पूरा भी भर सकते हो. शिष्य ने कहा गुरुदेव मैं भी तो यही का रहा हूं की मन को खाली करना है यह पत्थर है उन्हें आसानी से निकाला जा सकता है और घड़े को खाली किया जा सकता है लेकिन मैं अपने मन को कैसे खाली करूं।
गुरु ने कहा इस खाली घड़े में एक पत्थर डालो और दो पत्थर निकालो। शिष्य ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है। गुरुदेव जब इस गाड़ी में दो पत्थर होगा तभी तो दो पत्थर निकलेगा ,भला एक डालकर दो कैसे निकालूं। गुरु ने कहा चलो तो ऐसा करो घड़े में दो पत्थर डालो और चार पत्थर निकालो। शिष्य ने कहा गुरुदेव ऐसा कैसे हो सकता है. यह कोई चमत्कारी घड़ा थोड़ी ना है जो एक डालोगे तो दो निकलेंगे और दो डालोगे तो चार निकलेगा।
गुरु ने कहा घड़ा चमत्कारी नहीं है लेकिन तुम्हारा जो मन है वो चमत्कारी है इसमें सिर्फ तुम एक विचार निकलोगे तो इसके पीछे दो विचार निकलते हैं, जब तुम दो निकलोगे तो चार निकलते हैं और जब तुम चार निकलोगे तो 16 निकलते हैं और ऐसे ही करते करते विचारों की एक लंबी श्रृंखला बन जाति है और तुम यही नहीं रुकते एक के बाद एक विचार को पढ़ते जाते हो। यह मिट्टी का घड़ा तो पत्रों से भर जाएगा लेकिन तुम्हारा मन कभी नहीं भरत वह हमेशा खाली और खाली ही राहत है यह मन की माया है की सब कुछ है लेकिन फिर भी कुछ नहीं।
मैं आपकी बात को समझ रहा हूं लेकिन क्या मैं हमेशा अपने विचारों के जाल में फंसा रहूंगा क्या? मन की माया से बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं है. गुरु ने कहा इस मिट्टी के घड़े को आधा पत्थरों से भर दो शिष्य ने ऐसा ही किया ,फिर गुरु ने कहा अब इन पत्थरों में से कोई एक पत्थर को चुनो और उस पत्थर की एक छोटी सी मूर्ति बनाकर मुझे दो, मैं जानता हूं की तुम एक अच्छे कलाकार हो। शिष्य ने एक पत्थर निकाला और उसे पत्थर को तरासने लगा ,फिर उसे लगा की यह पत्थर अच्छा नहीं है तो उसने तुरंत दूसरा पत्थर निकाला, उसे उस पत्थर में भी उस को मजा नहीं आया फिर उसने तीसरा पत्थर निकाला उस का रंग उस को
अच्छा नहीं लगा फिर उस ने चौथ पत्थर निकाला लेकिन उसे उस पत्थर में भी उसे कुछ खास नजर नहीं आया.
फिर गुरु ने कहा - जीस पत्थर को तुमने पहले बार निकाला था उस पत्थर को यह समझकर तरासो की अब तुम्हारे आस पास कोई और पत्थर नहीं है. तब शिष्य ने उसे पत्थर को तरासना शुरू किया और उस पत्थर से अपने गुरु की एक अति सुंदर मूर्ति बनाई और और शिष्य ने गुरु से कहा इस पत्थर से इतनी सुंदर मूर्ति बन सकती है मैं यह सोच भी नहीं सकता था. तब गुरु ने कहा जब हमारे पास विकल्प नहीं होता तब हमारे पास जो भी होता है ,हम इस में अपनी संपूर्ण ऊर्जा लगाते हैं और इस से सब से बेहतर बनाते हैं और जब विकल्प होता है तब हम बस पत्थर को चुनते ही र जाते हैं, मूर्ति नहीं बन पाती। हमारा मन भी हमारे लिए के विचार के पीछे हजारों विकल्प खोल देता है और हम एक मुख्य विचार को छोड़कर उन हजारों विकल्पों में फैंस जाते है। मैं आपकी बात को अच्छी तरह समझ रहा हूं लेकिन अब मुझे क्या करना चाहिए मेरा मार्गदर्शन करें।
अपने ध्यान को एकत्रित करो एकाग्रता लो और जो कर रहे हो उसे अंतिम समझ कर करो ,ऐसे करो की इसके बाद तुम्हें कुछ नहीं करना और जब दूसरे विचार पर कार्य करो तब केवल इस पर कार्य करो किसी तीसरी विचार पर मत जाओं।
मन के मायाजाल से निकालना इतना आसन नहीं है लेकिन अभ्यास करने से सब कुछ पाया जा सकता है. गुरुदेव मैं ऐसा ही करूंगा, यह बात समझने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद गुरुदेव। यह का कर शिष्य वहां से चला जाता है.
दोस्तों हम सब अपने मन को खाली करने का प्रयास करते रहते हैं. हमारे मन में जो विचार उठाते रहते हैं उससे हम परेशान रहते हैं, हम चाहते हैं की यह विचार कही चले जाए और हम शांत हो जाए लेकिन हम जितना इन विचारों से भागते हैं यह विचार हमें उतनी ही जोर से पकड़ लेते हैं क्योंकि हम विचारों को शांत करने के लिए विचारों का ही उपयोग करते हैं और जिन विचारों का उपयोग करते हैं वह विचार आपके उन्ही विचारों से जुड़े होते हैं जिन विचारों को आप छोड़ना चाहते हो और वह विचार आपको छोड़ना नहीं चाहते तो यह कैसे संभव होगा की आप शांत हो जाएंगे। यह तभी संभव हो सकता है जब आप शांत होने की कोशिश भी छोड़ दें और अपने समस्या के समाधान पर ध्यान दें, एकाग्रता ले, ध्यान लगाएं और इस बात को समझे की चिंता करने से समाधान नहीं मिलेगा, चिंतन करने से समाधान मिलेगा। दोस्तों हम अपने मन को शांत कर सकते हैं.
कुछ तरीके आप अपना सकते हो- जैसे की
1. अपने विचारों को लिखकर व्यक्त करें। यदि आपके मन में विचारों का सैलाब उठ रहा है तो उन्हें लिख लेने से आपको सहायता मिलेगी। स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू करें। आप कैसा महसूस कर रहे हैं क्यों महसूस कर रहे हैं और इसके लिए आप क्या करना चाहते हैं. यह सारी जानकारी निकाले आपके पास कोई ऐसा ठोस करण होगा जिस के बरे में आप सोच रहे हो. इस तरह आपको एक बड़ी उपलब्धि के पाने जितनी खुशी महसूस होगी फिर भले ही आपने कुछ ना किया हो. इस रोचक योजना की मदद से आप पुरी तरह से अपने विचारों को बाहर निकाल सकेंगे। अपनी सारी परेशानियो को एक पेपर पर लिख ले, यह आप को क्यों परेशान कर रहे हैं। इस पर विचार करें फिर उसे मोड कर बाहर फेक दें जी उसे पेपर को फेक दें. और लोगो में पाया गया है जो लोग अपने विचारों को पेपर पर लिखकर फेक देते हैं वे उन्हें अपने मन से बाहर निकाल पाते हैं और बाहर निकालने में वो कामयाब हो जाते हैं और ऐसे लोग बहुत कम चिंता करते हैं।
2. पहले की बातो को याद ना करें, बीता हुआ कल कभी भी नहीं आता लेकिन बीते हुए कल को याद कर ने से मन बेचैन जरूर हो जाता है और फिर मन को शांत और दिमाग को शांत करना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में अगर किसी की बीते हुई कल में कुछ बुरा या अच्छा हुआ हो तो उसे याद नहीं करना चाहिए। जब भी बीते हुेए कल को याद किया जाता है तब तब मन शांत से बेचैन हो जाता है.
3. अपने सफलता को देखें जो आप ने अपनी जिंदगी में पाया है. उस के बरे में सोचे ना की आप को उस बारे में सोचना है जिस में आप को असफलता मिली। आप ने अपनी जिंदगी में कुछ तो किया ही होगा जिस में आपको सफलता मिली हो, आप उसके बरे में सोचें। हमेशा सकारात्मक बातें सोच.
4. अपनी नींद पुरी करें। पुरी नींद ना लेना भी आपके मन को बेचैन कर सकता है। दिमाग को अशांत कर सकता है। नींद एक बहुत ही जरूरी हिस्सा होती है शरीर के लिए लेकिन जब पुरी नींद नहीं होती तो बहुत ही मुश्किल हो जाति है. अगर सही तरीके से पूरा नींद ना लिया जाए तो मन बेचैन रहत है. इसीलिए कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर ले.
5. समय-समय पर आप बाहर घूमे। एक स्थान पर रहने पर मन में बेचैनी बाढ़ जाति है और मन भी नहीं लगता , मन में तरह-तरह की बेचैनी होने लगती है. अपने मन को शांत करने के लिए समय-समय पर बाहर घूमते रहना चाहिए घूमने से हम सभी चिंता को कम कर देते हैं. हम यह भूल जाते हैं की हमें किसी प्रकार की चिंता है या किसी प्रकार का कोई काम है.
Wednesday, 21 June 2023
तुमारा डर काल्पनिक हैं
तुमारा डर काल्पनिक हैं -your fears are imaginary
बहुत पुरानी बात है एक नगर का राजा हर रोज अपने राज्य का भ्रमण करने के लिए शाम को घोड़े पर बैठकर निकलता। एक बार उसे राजा की नजर एक साधु पर पड़े। वह साधु एक पेड़ के नीचे बैठे रहता , अपने धुन में मस्त राहत, उसको आसपास की चीजों के बरे में कोई फिक्र नहीं थी.
उसके पास छोटे बच्चे आते और उस साधु को कंकर मारते लेकिन वह साधु उन बच्चों पर ध्यान ही नहीं देता। थोड़ी देर में वो बच्चे वहां से चले जाते। यह सब घटना वो राजा देख रहा था ,उसके बाद वो राजा हर रोज भ्रमण के लिए जब भी निकलता वह साधु को देखता,साधु कभी बांसुरी बजता रहता , कभी नाचता राहता तो कभी आसमान के तारे गिनता रहता और राजा को यह सब देख कर बहुत खुशी मिलती।
अब राजा का नियम बन गया जब भी वह भ्रमण के लिए निकलता तो एक बार साधु को जरूर देखता। एक बार वो राजा उन साधु के पास गया और उनके चरणों में गिर पड़ा और कहा - महाराज आगे बारिश का मौसम आ रहा है और मैं नहीं चाहता की आप इस पेड़ के नीचे ही बारिश का मौसम निकाले।आप काफी बूढ़े हो यदि आप यहां पर रहे तो आप बीमार पड़ जाओगे । मैं चाहता हूं की आप मेरे राज महल में चलो. बस राजा ने इतनी सी बात कहीं और वह साधु अपना झोला लेकर तयार हो गया. राजा को उम्मीद नहीं थी की वह साधु ऐसा जवाब देगा की उनकी एक शब्द कहने पर ही तयार हो जाएगा। राजा को लगा की यह साधु बहुत बड़ा ढोंगी है. शायद हो सकता है किसी ने मेरे ऊपर चाल करने के लिए इसे छोड़ हो. राजा को लगा की साधु कुछ ऐसा जवाब देगा की राजा मुझे महलों से क्या मतलब, हम तो साधु है हम तो आसमान को ओढ़ते हैं और धरती को बिछोना बनाते हैं, हमें राज पाठ की जरूरत नहीं है राजा। राजा ने तो ऐसा जवाब सुनने के लिए साधु को महल चलने के लिए कहा था, लेकिन राजा की एक आग्रह पर साधु रावना हो गया। राजा कुछ और कह पाते उससे पहले ही वह साधु राजा के घोड़े पर बैठ गया और कहा की चलो राजा। अब राजा के मन में यह दुख सम गया की जरूर यह मतलबी है और मैं तो बस इस साधु को ऐसे ही कह रहा था अब राजा को लगा की फालतू की आफ्त अपने ऊपर ले ली मैंने। अब वो साधु घोड़े पर बैठा था और राजा को पहले बार अपने महल पैदल जाना पड़ा। नगर के लोग भी देख रहे थे फिर वो राजा और साधु महल में पहुंचे, जैसे ही वह महल में पहुंचे उसे राजा ने कहा साधु बाबा मैं चाहता हूं की बगीचे में आपके लिए एक झोपड़ी बनवा दे ताकि आप वहीं पर बैठकर भगवान का नाम ले. साधु ने कहा राजा नहीं, मैं आपके महल में रहना चाहता हूं, भला मैं भी तो देखूं की महलों में कैसे रहा जाता है. अब राजा के छाती पर सांप लौट गया। साधु कुछ इस तरीके से राहता जैसे वह इस नगर का राजा हो। राजा से भी अच्छे कपड़े पहनता राजा से भी अच्छा खाना खाता और राजा से भी शान से रहने लगा और राजा को यह सब देखकर बहुत दुख होता। राजा सोचता की मैं तो इसको एक सच्चा साधु समझ रहा था, मैं तो इसको हीरा समझ रहा था, लेकिन यह तो अंदर से लोहा निकाला ,ऊपर बस सोनी की परत चढ़ी है, यह अंदर से बहुत ही बड़ा ढोंगी बाबा है. अब राजा हर रोज दुखी रहने लगा अब वह साधु बाबा का नाम भी नहीं ले रहा था. ऐसे करते-करते 6 महीने गुजर गए। एक बार राजा ने बहुत हिम्मत करके वह साधु से कहा की महाराज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं ,साधु ने कहा जी जरूर पूछिए- राजा ने कहा महाराज, आप मेरी तरह खाना खाते हैं, आप मेरी तरह कपड़े पहनते हैं, मेरी तरह आप सोते हैं, फिर आप मे और मुझ में फर्क क्या है, यह बात सुनकर वह साधु बोला-राजा मुझे पता है की यह सवाल तुम्हारे मन में आज से नहीं बहुत दिनों से खटक रहा है, लेकिन भला इतने दिन तक तुमने यह बात छुपा कर क्यों रखी. यदि तुम पहले यह बात मुझे बोल देता तो इतने दिन तक तुम्हें दुखी नहीं रहना पड़ता तुम कितने चिंता अपने मन में छुपाते हो राजा। मुझे पता है, मैं जब से यहां आया हूं तु दुखी रहने लगा है। मैं तुम्हें इस सवाल का जवाब जरूर दूंगा, लेकिन मैं यहां नहीं दूंगा। कल सुबह मेरे साथ चलना और तुम्हारे नगर की नदी के उस पार मैं तुम्हें इस सवाल का जवाब दूंगा। राजा सोच ने लगा की जरूर यह बाबा बहुत बड़ा ढोंगी है और इसे पता है की यदि इसका यहां पर पर्दा फास हो गया तो मैं इसे पकड़ ना लूं ,इसलिए नदी के उस पार मुझे अपने सच्चाई बता ये गा लेकिन मुझे भला संतो से क्या दुश्मनी है. मैं तो इसे छोड़ दूंगा कम से कम आफत टले लेगी। यह सोचकर राजा सो गया, जब राजा सुबह उठा तो साधु पहले से ही अपने बांसुरी और झोला लेकर तैयार खड़ा था और मीठी-मीठी बांसुरी बजा रहा था. जैसे ही राजा साधु के पास पहुंच तो साधु ने कहा चले महाराज और दोनों ही नगर से निकाल गए. वह आगे चलते जा रहे थे नदी भी पर हो चुके थे, लेकिन साधु रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. तभी राजा उस साधु से कहते हैं महाराज अब रुक जाइए मैं और आगे नहीं चल सकता। साधु कहता है की राजा चलो मेरे साथ मैं आगे जाता हूं तभी वो राजा कहता है महाराज मैं आगे नहीं चल सकता मेरा राज पाठ मे रे बीबी, बच्चे ,मेरा परिवार पीछे छुठ गया है. मैं आपकी तरह साधु थोड़ी ना हूं, जो झोला लेकर चल दूँगा। मेरी पीछे जिम्मेदारियां है, मैं आपके साथ नहीं चल सकता। तभी वह साधु कहता है बस राजा इतना ही फर्क है तुझ में और मुझमें में, मैं साधु हूं मैं कही पर भी चलूंगा मुझे किसी भी चीज की कोई फिक्र नहीं है. मैं उस पेड़ के नीचे जब था तब भी मैं इतना ही खुश था और तुम्हारे राजमहल में रहा तब भी मैं इतना ही खुश था और आज मैं तुम्हें छोड़कर जा रहा हूं तू भी मैं इतना ही खुश हूं। मैं कभी भी किसी भी स्थिति में दुखी नहीं राहत लेकिन तुम्हारा जीवन परिस्थितियों पर निर्भर करता है तुम्हारी परिस्थितियों कैसी है उसके हिसाब से तुम जीते हो, जैसे -स्थिति खराब है तो तुम दुखी हो जाते हो और परिस्थितियों अच्छी है तो तुम खुश हो जाते हो. लेकिन हमें परिस्थितियों से फर्क नहीं पड़ता। मेरी बांसुरी उस पेड़ के नीचे भी इतनी सुरीली बजती , तुम्हारे महल में भी इतनी ही सुरीली बजती और आज मैं जा रहा हूं तो भी मेरी बांसुरी इतनी ही सुरीली बजेगी। मुझे किसी भी स्थिति में दुख या सुख नहीं मिलता ना मुझे इसका एहसास होता है, मैं हर स्थिति में खुशी रहत हूं. यह बात सुनकर वो राजा सोचने लगा अरे कितने अनमोल को खो दिया मैंने इतने दिन साथ में रहकर भी मेरे साधु की असलियत नहीं जान सका. ये साधु तो हीरा निकाला इतने दिन साथ रह कर मैं इसके साथ भजन कीर्तन भी नहीं कर पाया ,करता भी क्या खाक मैं तो इसको ढोंगी समझ रहा था. लेकिन यह तो बहुत ही अद्भुत आदमी निकाला ,यह सोचकर वो राजा साधु के चरणों में गिर पड़ा और कहा के साधु बाबा मैं आपको जाने नहीं दूंगा तभी वो साधु कहते हैं सोच लो राजा यह घोड़ा यही पर खड़ा है. मैं तो वापस चलूंगा लेकिन फिर तुम चिंता में पड़े रहोगे, फिर तुम दुखी हो जाओगे। यह सुन कर उस राजा के मन में फिर वही विचार आया ,यह साधु तो फिर से मान गया. यह तो फिर मेरे साथ चलेगा, भला यह कैसा साधु है. लेकिन वह साधु राजा को देखते हुए बोला लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि तुम कभी नहीं सुधारने वाला मैं तुम्हारे महल नहीं चलूंगा बस तुम खुश रहना, यह कहते हुए साधु बाबा वहा से चले गए और राजा बस उसको देखाता ही र गया.
दोस्तों हमारे जीवन ने यह चीज बहुत मायने रखती है की हम जैसे स्थिति होती है वैसे ही हम हो जाते हैं ,जब परिस्थितियों खराब चलती है तो हम दुखी हो जाते हैं, जब परिस्थितियों अच्छी चलती है तो हम खुश हो जाते हैं. ऐसा लगता है जैसे हम अपने जीवन को नहीं चला रहे, हमारी परिस्थितियों हमारे जीवन को चला रहे हैं. आप अपने जीवन में जरूर अनुसरण करना इस बारे में एक बार जरूर सोचना की आखिर ऐसा होता क्यों है. यह तो हमको पता है की हमेशा हमारे पास अच्छी परिस्थितियों नहीं चल शक्ति और यह भी हमें पता है की हमारे पास हमेशा बुरी परिस्थितियों भी नहीं चलते रहेगी ,अच्छी आई है तो बुरी भी आएगी और बुरी आई है तो अच्छी भी आएगी। लेकिन फिर हमें दुखी और सुखी होने का क्या मतलब क्योंकि परिस्थितियों तो बदलती रहती है और हमें पता है की थोड़े दिन बाद यह परिस्थितियों बादल जाएगी। लेकिन फिर भी हम दुखी और सुखी होते रहते हैं और हमें कभी कभी यह भी लगता है की सुख के दिन तो बहुत जल्दी गुर्जर जाते हैं दुख के दिन गुजरते ही नहीं। सच्चाई तो यह है की हम दुख की तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं और सुख की तरफ कम ध्यान देते हैं, इसीलिए हमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन में खराब परिस्थितियों बहुत दिनों तक रहती है और खुशी वाली परिस्थितियों बहुत कम रहती है। लेकिन यह बात आप अपने जीवन में जरूर सोचना क्योंकि मैं हर कोई बात आपको नहीं बता सकता, आपको खुद इस चीज को अनुभव करना होगा। तभी आप इस चीज को समझ पाओगे की हमारी जिंदगी की परिस्थितियों हमें चला रही है या हम खुद अपने जीवन को चला रहे हैं और यदि हम परिस्थितियों पर निर्भर है तो हमारी खुशी और दुख दोनों ही दूसरों पर निर्भर करता है. परिस्थितियों पर हमारा जीवन निर्भर करता है तो कोई भी इंसान हमें दुखी या खुश कर सकता है इसीलिए हमें हमारी परिस्थितियों को समझना होगा हमें हमारी जीवन को समझना होगा। हमें दोनों ही परिस्थितियों को एक ही नजर से देखना होगा तभी शायद हम जीवन की असली पहचान कर पाएंगे
उम्मीद है दोस्तों यह कहानी आपको पसंद आई होगी
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