Thursday 29 June 2023

जीवन के सभी सुखों का एक मंत्र

जीवन के सभी सुखों का एक मंत्र 


यह  कहानी इतनी खूबसूरत है आपको बेहद पसंद आएगी।  इस कहानी से मैंने सीखी थी आप की कामयाबी, आपके घर में सुख शांति और आपका स्वस्थ रहना। आदमी के शरीर को, आदमी के जीवन को लगे वाले दुखों का निवारण ये कहानी है। इस कहानी  में पुरी दुनिया का ज्ञान और पुरी दुनिया के परेशानियां का समाधान इन चार  बातों  में बताया गया है. 

बहुत पुरानी बात है एक नगर का सेठ  बहुत ही ज्यादा धनवान था ,उस सेठ ने अपने जीवन में बहुत बड़े-बड़े मुकाम हासिल किया,  उसको हमेशा  कामयाबी मिल जाति, वह कभी हारा  नहीं,  उसका व्यापार जोरो सोरों से चल रहा था. उसने अपने पिताजी से वह चार  बातें सिख रखी थी और उन  बातो  का अनुसरण करते हुए उसने अपनी पुरी जिंदगी काटी। अब वह काफी बुढा  हो चला था।  सेठ को पता था अब मैं बहुत बुढा  हूं और मेरी मृत्यु कभी भी हो सकती  है और मेरा बेटा इतना ज्ञानी नहीं है. मेरा बेटा मेरे जैसा व्यापार नहीं चला पाएगा। इसीलिए वो एक बार अपने बेटे को अपने पास बुलाता  है और कहता है, मैंने अपने पिताजी से चार  बातें सीखी , और उन बातों  का मैंने पुरी जिंदगी अनुसरण किया और नतीजा तुम्हारे सामने है. आज मैं इस नगर का सबसे बड़ा सेठ  हूं और मैं चाहता तो आस पास के इलाके में भी अपना व्यापार फैला सकता था. लेकिन मैं इतने में खुश हूं और मैं चाहता हूं की तुम इतने में ना रहो, तुम और ज्यादा आगे बढ़ो। लेकिन उस को पता था की उसका बेटा बहुत भोला है. उसके बेटे को इतना इस दुनियादारी के बारे  में पता नहीं है. इसीलिए उसने  ने अपने बेटे को पास में बैठा कर चार बातें बताई की बेटा आज मैं तुम्हें जिंदगी की सबसे अच्छी  बातें बता रहा हूं. इन चार  बातों  का अपने जिंदगी में अनुसरण करते रहना।  इन चार  बातों  को अपने जीवन में उतार देना, तुम कभी भी नहीं हारोगे, ना कभी परेशान होगे , ना तुम्हारे पास कोई दुख आएगा, ना तुम्हारे घर में कोई क्लेश आएगा,  ना तुम्हारे साथ कोई झगड़ा करेगा, ना व्यापार में हानी होगी, ना तुम्हारे घर परिवार में कभी क्लेश होगा।  चार  बातों  को याद रखना। उसके बाद वह सेठ कहता है की 

1)सबसे पहले बात - जब भी अपने काम पर जाओ  तो छांव में जाना और छांव में ही वापस आ  जाना, कभी भी धूप में काम पर मत जाना, छांव में जाना।

2)दूसरी बात अपने घर के चारों तरफ चमड़े की सीमा करना।
 
3)तीसरी बात हमेशा मीठा करके खाना और
 
4)चौथी बात अपनी पत्नी को बांधकर पीटना।


अब उस सेठ के बेटे ने चारो  बातों  को सुना और उन बातों का अनुसरण करने  लगा. जैसे उस ने सुनी  थी. वैसे ही सेठ को पता था की यह जरूर इन चार  बातों  का अनुसरण करेगा और इन चार बातो  का मतलब भी समझेगा। उसके थोड़े दिन बाद उस सेठ की मृत्यु हो जाति है. अब वो उन का बेटा चार बातों  को अपने एक कागज में लिखता  है और उन चार  बातों  पर ही चलना शुरू कर देता है. सबसे पहले बात उसके पिताजी ने बताई थी की बेटा छाँव  मैं जाना और छाँव  में ही वापस आना. उसने अपनी जो दुकान थी वहां से घर तक, उसने तंबू लगा  दिया क्योंकि पैसा तो बहुत था तो तंबू लगा  दिया की, मुझे धूप में काम पर नहीं जाना है क्योंकि मेरे पिताजी ने धूप में काम पर जाने  को माना किया है. इसीलिए उसने तंबू लगता दिया ताकि धूप आए ही ना.

 दूसरी बात उसके पिताजी ने बोली थी की अपने घर के चारों तरफ चमड़े की बाड  करना तो उसने चारों तरफ चमड़े की सीमा ही करवा ली. अब आस पास लोग बोलने लगे की भाई बदबू आ  रही है. यह तुमने क्या कर दिया,  अपने घर में कोई चमड़े की बाड करता है. चमड़ा  तो बहुत बदबू देता है लेकिन उसके पास बहुत पैसा था इसलिए कोई आदमी उस का विरोध नहीं कर पाया क्योंकि उस बेटे को तो अपने पिताजी की कहीं हुई बात  पर ही चलना था.

 तीसरी बात थी की मीठा करके खाना , इसीलिए अपनी बीबी से हर रोज वो मीठा भोजन ही बानवाता। वह  खीर, बहुत साड़ी मिठाइयां यही सब खाता रहता।

 और चौथी बात यह की अपनी पत्नी को बांधकर पीटना- तो वो अपनी बीबी को बांध कर ही पिटता , कभी भी ऐसे हाथ नहीं उठाता। अब धीरे-धीरे सेठ  के बेटे का जीवन पुरी तरह बर्बादी की तरफ चला गया। क्योंकि चार बातें जैसे उसके पिताजी ने बताई थी, वैसा वह नहीं चल पा  रहा था. उसको समझ ही नहीं था की उसके  पिताजी क्या कहना चाहते  है. अब वह अपनी मर्जी होती तो वह दुकान पर जाता,जब मन नहीं होता तो नहीं जाता,धीरे धीरे उसके ग्राहक छूटने लगे  तो उसका व्यापार धीरे-धीरे  ठप हो चुका था, वो पुरी तरह बर्बाद हो गया ।  दुकान बहुत धीरे चल ने लग गई और उसके चमड़े की बाड  के करण आस पास में बदबू फैल गई. इसीलिए उसके घर के आसपास जो पड़ोसी रहते थे वह भी अब उस को छोड़ कर चले गए और उसके घर में कोई आता भी नहीं था. आता भी कैसे भला चमड़े  की इतनी बदबू आती  थी की उसके घर में कोई मेहमान नहीं आते और हमेशा मीठा भोजन  खाता। उसे चक्कर में उसने अपना पूरा शरीर ही बेकार कर दिया, शरीर में बहुत ज्यादा वजन बढ़ गया क्योंकि मीठा भोजन तो शरीर के लिए जहर की तरह होता है. उस को  तरह-तरह बीमारियां आने लगे. हर रोज वो दवाइयां पर चलना शुरू हो गया. डॉक्टर की टीम अपने पास रखना लगा उसके चलते उसका पैसा भी बर्बाद हो ने  लगा ,खाने की वजह से उसको और ज्यादा बीमारियां लगने  शुरू हो गई। 

और चौथी बात के अनुसार वह अपनी पत्नी को बांधकर पिटता , उस चक्कर में  उसकी पत्नी उसको छोड़कर अपने मायके चली गई. अब वह वापस आने का नाम ही नहीं ले रही थी , क्योंकि वह  अपनी पत्नी को बांधकर पिटता था , भला वो औरत उस के साथ  कैसे रह सकती थी।  अब उसे सेठ के बेटे का जीवन पुरी तरह बर्बाद हो गया, कुछ भी नहीं बचा  उसके पास. इसी को एक बार वो सोच रहा था और उसने कहा की मेरे पिताजी ने मुझे कैसे गलत बातें सिखाई। मेरा पूरा जीवन बर्बाद हो गया भला कोई  ऐसा करता है की अपने औलाद के साथ। मुझे ये बातें क्यों सीखा कर गए जो मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर गई और भला वो तो मुझे यह कह  रहे थे की मैंने अपने पिताजी से यह बातें सखी थी। भला इस बातों  पर चलकर जीवन कैसे अच्छा किया जा सकता है. यह  साफ बता रही है की यह बातें  गलत है और मैंने भी मूर्खतापूर्ण अपने पिताजी की बात मान ली. ऐसी वह विचार करता रहता  और रोज परेशान होता रहता  की कैसे गलती से मैंने अपने पिताजी की बातें मान  ली.

ऐसे ही सोचते हुए एक बार वो एक साधु के पास जाता है और कहता है साधु बाबा अब बस आप का आसरा  है आप मुझे बचा  लीजिए क्योंकि मेरी पुरी जिंदगी बर्बाद हो गई और उसका करण है मेरे पिताजी। मेरे पिताजी ने मुझे जो कहा वो मैंने  किया और मैं एक अच्छा बेटा बन कर रहा.  अपने पिताजी की हर बात मानता और वह चले गए. जाने से पहले  उन्होंने मुझे चार बातें सिखाई और मैं अपनी पुरी जिंदगी में इसका अनुसरण करता रहा. लेकिन आज मैं पुरी तरह बर्बाद हो गया. मेरे पिताजी ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, ऐसा कहते हुए वो सेठ का बेटा रोने  लगा। तभी वो साधु बाबा कहते हैं आप रो मत ,आप मुझे यह बताइए की आपके पिताजी ने ऐसी कौन सी बातें बताई। उसके बाद उस का बेटा एक पर्ची निकालकर उस साधु  को देता है और कहता है साधु बाबा इसी में वो चार  बातें लिखी है.साधु जैसे ही पढ़ता है, पढ़ते  ही हंस ने लग जाता है.  कहता है तुम कितने बड़े मूर्ख हो, तुम्हारी पिताजी ने तो दुनिया का सारा  ज्ञान तुझे दिया है, लेकिन तू ठीक से समझा ही नहीं। तू तो इन चार बातों  का मतलब तो समझा ही नहीं। तुम्हारे पिताजी तो तेरी परीक्षा ले रहे थे की तुम समझ जाएगा इसलिए तुझे बता कर गए. यदि वह चाहते तो इसका मतलब भी तुम्हें बता सकते थे. लेकिन वो  तुम्हें मतलब भी  बता  कर चले जाते तो तुम अपने जीवन में क्या करते। तुम्हें भी तो कुछ ज्ञान अर्जित करना चाहिए था,  तुम्हें भी तो इस बात  को समझना चाहिए था और यदि तुम नहीं समझे तो बर्बाद हो गए। पहले ही किसी साधु के पास जाकर इन चार  बातों  का मतलब पता कर लेता। 

इन चार बातों का मतलब वो नहीं है जो तुम समझ रहे हो. उसके बाद सेठ  का बेटा कहता है, आप क्या कहना चाहते हैं साधु बाबा। बातें तो साफ-साफ दिखे रही है जो लिखी  है वही मैंने किया है. उसके बाद वो साधु बाबा कहते हैं ,मेरी बात ध्यान से सुनो, अब मैं तुम्हें बताता हूं इन चारों बातों  का मतलब और अभी भी वक्त है यदि तुम इन चार  बातों को मेरे से सिख कर अपने जिंदगी  अनुसरण करोगे तो तुम अपनी शोहरत  को वापस हासिल कर सकते हो, तुम अपने जीवन को सुखमय  बना सकते हो. 

उसके बाद वह साधु बाबा कहते हैं की तुम्हारे पिताजी की पहले बात का मतलब है की" छांव में जाना और छांव में आना", इसका मतलब यह है की तुम जब भी काम पर जावो  तो सूर्य उदय से पहले चले जाना उन के कह ने का मतलब ये था की सूर्य ना निकले उससे पहले चले जाना और जब सूर्य डुब जाता है तब तुम अपनी दुकान से वापस आना ताकि तुम पूरे दिन अपने दुकान पर कम कर सको. छांव में जान का मतलब यही होता है और तुमने जो  अपनी दुकान से  घर तक  तंबू लगाया, ताकि तुम छांव में जा सको,ये तो बर्बादी का ही कारण था. उन के कहने  का मतलब था की तुम सुबह जल्दी उठ कर जाओ  और शाम को वापस आओ ताकि तुम पूरे दिन दुकान में रहो, अपना व्यापार बढ़ाओ और जब  तुम दुकान में रहोगे तो दुकान का ही कम करोगे, इसीलिए तुम्हारे पिताजी ने यह बात कहीं। तभी वो सेठ के बेटे को बात समझ आई है और वह रोने  लगता है और कहता है संत बाबा,मैं कितना बड़ा मूर्ख हूं मेरे पिताजी ने तो चार  हीरे दे रखे थे लेकिन मैं उनको पत्थर समझ बैठा।

उसके बाद उसका बेटा कहता है साधु बाबा दूसरी बात का क्या मतलब है?- "चमड़े की बाढ़ करवाना" और मैंने यही करवाई।अब आप मुझे इस का मतलब बताइए। उसके बाद वो साध कहते हैं -चमड़े की बाढ़ करने का मतलब है तुम्हारे घर में कुत्ता या बिल्ली पालना। जब तुम अपने घर में कुत्ता पालोगे तो वह चोरों से रक्षा करेगा ताकि तुम्हारी धन दौलत बची  रहे, तुम्हारी धन दौलत के पास में कोई ना पहुंचे। 'चमड़े की बाढ़ करना' इसका मतलब ये नहीं की तुम सच में चमड़े की बाढ़  करवा दो और तुम ने इसका गलत मतलब निकाला ,इसलिए तुम बर्बादी की तरफ चले गए. अब ना तो तुम्हारे घर में कोई आता है और ना ही तुम्हारे कोई पड़ोसी बचे , ना रिश्तेदार बचे।  

उसके बाद उसे सेठ का बेटा कहता है तो फिर मुझे तीसरी बात का मतलब बताइए 'मीठा करके खाना'.   मैं रोज मिठाई खाता हूं तो फिर मैं बीमारियों से कैसे घीर गया? उसके बाद वह साधु बाबा कहते हैं 'मीठा करके खाने' का मतलब है -हमेशा भूख तेज लगे पर ही भोजन करना, जब तुम्हें भुक तेज लग ने  पर भजन करोगे तो तुम खाने का सम्मान कर पाओगे क्योंकि भूख कभी भी भोजन नहीं मांगती जैसा मिलता है वह खा लेता  है। जब इंसान को भूख लगती है तो उसको बहुत सारे पकवान नहीं चाहिए। यदि उस को ठंडी रोटी भी मिलेगी तो भी उसको बहुत ही मीठा करके खाएगा और उसको बहुत अच्छा लगेगा और यही तुम्हारे पिताजी कह कर गए थे ताकि तुम हमेशा स्वस्थ रह सको ,अच्छा खाना खा  सको और भुक  तेज लगे पर जब आदमी भोजन करता है तो वो भोजन इंसान को नुकसान नहीं पहुंचती बल्कि फायदा पहुंचती है और तुम जो भोजन कर रहे हो ,जो मीठा कर के खा  रहे हो, हमेशा वो भोजन कर रहे हो जो तुम्हें मौत की तरफ लेकर जा रही है और  तुम्हारे शरीर से पता चला है की तुम कितना खाते  हो और क्या खाते  हो, क्योंकि जब बिना भूख के भोजन करते हैं तो वह हमारे शरीर को फायदा नहीं करता बल्कि वो नुकसान पहुंचता  है.और जब शरीर को भोजन की जरूर होती है तब हम भोजन करते हैं तो इस से हमारा शरीर बनता है और इस से हमारा शरीर निरोगी राहत है. कभी भी बीमारियां हमारे पास में नहीं आती  और यही तुम्हारी तीसरी गलती थी.

 उसके बाद वो साधु कहता है की तुम ने चौथी गलती भी की होगी अपनी बीबी को बांधकर पिटा  होगा। तभी वह सेठ का बेटा जोर  से रोने  लगता है कहता है साधु बाबा मेरे तो घर बर्बाद हो गया आप बताइए मैं क्या करूं और इस बात का क्या मतलब है. आखिर क्या मेरे पिताजी क्या कहना चाहते थे. उसके बाद वह साधु कहते हैं अपनी पत्नी को बांध कर पीटने का मतलब है जब तुम्हारी पत्नी के साथ यदि तुम्हारा झगड़ा हो जाए तो उस पत्नी पर तब तक हाथ मत उठाना जब तक उस की कोई औलाद ना हो जाए ,जब तक उस की औलाद नहीं होती है तब तक स्त्री कहानी भी उड़ सकती  है. जब एक स्त्री की औलाद हो जाति है तो वो अपने रिश्तो में बंध जाति है ,उस के बाद तुम भले उसे पर हाथ उठा सक ते हो वह तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाएगी, वो तुम्हें छोड़ देगी लेकिन वो तुम्हारी औलाद को नहीं छोड़ेगी। इसीलिए तुम्हारे पिता जी कहना यही चाहते थे और इसका मतलब यह नहीं की तुम अपने पत्नी पर हाथ उठाओ।कोई भी इंसान तुम से जुड़ा हो यदि वो तुम्हारे साथ गलत कर रहा हो तो उस को बांधने की कोशिश करो ऐसी बातों  में बांधो ताकि वो तुम्हें कोई भी नुकसान ना पहुंच सके और ना कर सके जो तुम्हें गलत लग रहा हो और अपने रिश्तो पर भी यही बात बैठती  है. रिश्ते जब बांधते नहीं है तब तक तुम उसके साथ कुछ भी मत करना ,उसके साथ अच्छे से पेश  आना और यदि रिश्ता जब बध  जाता है ,उसके बाद तुम अच्छे से पेश भी नहीं आओगे तो  भी वो रिश्ता तुम्हें छोड़कर नहीं जाएगा और तुमने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की अपने पत्नी को बांध कर पीट ने की और इसी वजह से तेरी पत्नी तुझे छोड़कर चली गई और  तुम आज से इन चारों बातों  का अनुसरण करो,  ये हमारी पूरे जीवन की परेशानियां का समाधान है.  

किसी भी तरीके से देख सकते हो यदि तुम्हें कामयाबी चाहिए तो तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। सूर्य  जब निकलता है उससे पहले घर से निकालना होगा और तुम्हें  काम करना होगा और हमेशा तुम्हें चौकन्ना रहना होगा ताकि तुम्हारी धन दौलत को कोई ना छीन सके. तुम्हारे रिश्तों पर कोई ठेस  ना पहुंच सके और हमेशा अच्छा भजन करना ताकि तुम स्वस्थ  और तंदुरुस्त रह  सको और जितनी तुम्हें सांस मिली है उसको तुम खुशी खुशी जी सको  और हमेशा रिश्तो को बांध कर रखना कभी भी उन रिश्तो को खुला मत छोड़ देना। आज से इन सभी बातों  का अनुसरण करते हो तो तुम वापस अपने शोहरत हॉसिल  कर सकते हो, वापस अपना व्यापार बड़ा कर  सकते हो. उस के बाद साधु को प्रणाम करते हुए अपने घर की तरफ निकाल जाता है और वह सबसे पहले अपनी पत्नी को लेकर आता है और उन बातों  का सही अर्थ अपने पत्नी को समझता है.और उसके बाद उन बातों  का अनुसरण करते हुए वो अपनी जिंदगी को जारी रखना है. दोस्तों ये चार बातें हमारे हर परेशानी का समाधान है। अब हर तरफ से इस बातों  को ले सकते हो इन चार बातों  में कामयाबी मिलती है. चार बातों में रिश्तों को कैसे बांधना है वो भी मिलता है, हमारा स्वस्थ भी जुड़ा हुआ है और हमारी रक्षा भी जुड़ी हुई है. यह चार  ही चीज इंसान को चाहिए और कुछ भी नहीं चाहिए और इन कर बातों  का यदि इंसान हमेशा अनुसरण करता है, तो मुझे नहीं लगता की किसी इंसान को कोई परेशानी आ  सकती  है. या वह अपनी जिंदगी में कुछ कर नहीं सकता, सब कुछ कर सकता है. यह बातें एक मुहावरे के हिसाब से कहीं गई है लेकिन हर कोई इन बात को समझ नहीं सकता इसलिए मैंने आपको इन बातों को विस्तार में समझाया और मुझे उम्मीद है ये कहानी आपको जरूर पसंद आई होगी। 

Tuesday 27 June 2023

कामवासना को ताकत बनाओ -

कामवासना को ताकत बनाओ 

दोस्तों अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है की जब हम किसी बुरी  आदत को अपनाना चाहते हैं तो बड़ा जल्दी अपना लेते हैं और उसे छोड़ना हो तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है. वहीं पर अच्छी आदत को अपनाना हो तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है और उसको छोड़ना हो तो बड़ा जल्दी छोड़ देते हैं. जैसे की एक लड़का सिगरेट पिता है और यदि उनकी दोस्ती दो  सिगरेट ना पीने वाले लड़कों के साथ हो जाति है तो वहां पर क्या सोचा  है क्या होगा। होना तो यह चाहिए की अच्छे लोगों की संख्या दो है इसलिए वो एक लड़का सिगरेट छोड़ देनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता। वहां पर वो दो लड़के भी सिगरेट पीना शुरू कर देंगे यानी की बुरी आदतें हमारे अंदर बहुत ही जल्दी आ  जाति है और अच्छी आदतों को हमें मेहनत करके अपने अंदर लाना पड़ता है और यही कामवासना के संबंध में हमारे साथ होता है. हम कामवासना को जोर जबरदस्ती से छोड़ना चाहते हैं और जब हम ऐसा करते हैं तो वह और ज्यादा शक्ति के साथ उभर कर आती  है.हम छोड़ नहीं पाते हैं चाहे कितने भी मेहनत कर ले।  लेकिन दोस्तों हमें कामवासना को छोड़ना नहीं है,छोड़ेंगे तो उसको छोड़ नहीं पाएंगे क्योंकि लाखों सालों में इस शरीर ने मेहनत करके अपने आप को इस काबिल बनाया है तो भला में इतने जल्दी उसको छोड़ कैसे देंगा  बल्कि हमें कामवासना को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है. इस कहानी में कामवासना के बरे  में आपको पुरी जानकारी मिल जाएगी और उस  को हावी होने से कैसे रॉक जाए वो भी आप जाने  वाले हो. तो चलिए शुरू करते हैं.
 
बहुत पुरानी बात है एक आश्रम में एक गुरु रहा करते थे। वह अपने शिष्यों को शिक्षा देते और उनके बाद उनको गांव में भेजते भिक्षा मांगने के लिए.ऐसे ही एक शिष्य भिक्षा मांगने के लिए गांव की तरफ जा रहा था तभी वो देखा है की तालाब के पास एक लड़का छुपकर कुछ देख रहा था. तभी वह शिष्य उसे लड़के के पास जाता है और कहता है भाई तुम यहां पर छुपकर क्या देख रहे हो. तभी वो लड़का कहता है की इधर आओ मैं तुम्हें बताता हूं वो लड़का कहता है की देखो तो  नदी  के किनारे पर्रिया  बढ़िया ना रही है कितनी खूबसूरत लड़कियां ना रही है. देखो तो जरा -वो शिष्य छुप कर जब देखता  है तो वो कहता है की इस में कौन सी नइ  बात है वो तो अपने वस्त्र धो  रही है और  नहा रही है। वो लड़का कहता है- क्या तुम्हें उन  लड़कियों को देखकर कुछ हो नहीं रहा है. तभी वो शिष्य वापस उन लड़कियों की तरफ देख ता  है और अब वो भी छुप ने लगा जैसे की कोई अपराधी छुप  रहा हो और वो छुप कर देखने लगा और धीरे-धीरे उससे कुछ चीजो  को देखने में बड़ा मजा आने लगा और वो जब भी  भिक्षा मांगने जाता तब  भी उनके दिमाग में यही चला राहत।
आश्रम में आता तो भी यही चलता  राहत। अब धीरे-धीरे गुरु को इस चीज का पता चलने लगा, यह  कुछ अलग
व्यवहार करने लगा है ,आखिर क्या बात है? एक दिन ऐसे ही  शिष्य  भिक्षा मांगने के लिए निकाला तभी गुरु उनके पीछे-पीछे आते हैं. तभी वह नदी के किनारे जाता है और एक लड़के के साथ खड़े रह कर छुप  कर लड़कियों
को देख रहा था. तभी वो गुरु आते हैं और उस के पीछे आकर खड़े हो गए. तभी वो गुरु कहते हैं क्या इन बच्चियों 
से भी तुम्हें भिक्षा लेनी  है. यह आवाज सुन कर शिष्य के रोंगटे खड़े हो गए वो तुरंत पीछे मुड़कर देखता  है की वह तो उनके गुरु थे। पास में जो लड़का खड़ा था वह तो वहां से भाग गया और वो शिष्य कहता है गुरु देव मैं तो अभी- अभी आया हूं. मैं तो बस ऐसे ही देख रहा था. मेरा वो कारण नहीं है देखने का जो आप सोच रहे हो और वो शिष्य  अपने गुरु के सामने बहुत ज्यादा लजित हो ता है  और वो दोनों ही आश्रम में आ  जाते हैं. तभी वो गुरु कहते हैं की मुझे यह बात बताओ की तुम ने अपने शपथ कितनी बार तोड़ी है तभी  शिष्य  कहता है गुरुदेव मैंने बहुत बार शपथ  तोड़ी और बहुत बार बड़ी ताकत के साथ शपथ भी ली लेकिन बहुत ही जल्दी छुट  जाति है. बहुत जल्दी मुझ से  शपथ टूट जाति है आखिर में क्या करूं गुरुदेव। 

तभी वह गुरु  शिष्य को  लेकर एक बगीचे में जाते हैं और कहते हैं की अब जरा यहां पर ध्यान दो नदी के बहाव  से यहां पर पानी आता है इस नाली में और नाली से फिर पेड़ों तक पानी पहुंचता है. अब जरा इस पानी को  रोक कर दिखाओ। तभी  शिष्य  कहता है यह तो बड़ा आसन है गुरुदेव ,यही पर पत्थर रख दो यह पानी रुक जाएगा। तभी वह शिष्य बहुत सारे पत्थर  लेकर आता है। उस नाली के पानी को रोकने के लिए वहां पर पत्थर रख देता है तभी देखा है की वो नाली का पानी बढ़ गया और पास में से पानी जाने  लगा. तभी वो गुरुदेव कहते हैं की यदि मैं शपथ लेता  हूं कि इस पानी को मैं रोक दूंगा तो क्या मैं इस पानी को नहीं रोक पाऊंगा। तभी वो शिष्य कहता है नही  गुरुदेव ऐसी बात नहीं है, मैं अभी इस पानी को रोक के दिखता हूं और आप की शपथ पुरी करके दिखता हूं. तभी वो शिष्य एक  बड़ा पत्थर  लेकर आता है और उसे  नाली के ऊपर रख देता है, कहता है की अब देखिए गुरुदेव आप की  शपथ पुरी हो गई. तभी गुरु कहते हैं की जरा ध्यान दो पानी उस नाली में बाढ़ रहा है अब धीरे-धीरे यह पानी पास में से आना शुरू हो जाएगा, लेकिन पानी रुकेगा नहीं।लेकिन जरा तुम सोचो यदि हम जहां से नदी से पानी आ  रहा है यदि वहीं से रोक दे तो क्या पानी आगे आ पाएगा।  बिल्कुल सही बात कहीं आप ने यदि हम पानी के असली करण को ही रोक देंगे तो पानी आएगा ही नहीं। शिष्य और गुरुदेव दोनों नदी के किनारे जाते हैं  जहां से उस नाली में पानी आ  रहा था, वहीं पर बड़े-बड़े पत्थर रख के पानी के वहाव  को  रोक देता है और कहता है गुरु देव मैंने आप की शपथ पुरी कर दी. अब आप देखिए पानी को रोक दिया गया.तभी वो गुरुदेव कहते हैं की अब जरा सोचो यदि  नाली से पानी  उन पेड़ों तक नहीं जाएगा, उन पेड़ों का क्या होगा।  शिष्य कहता है गुरुदेव फिर तो पेड़ सुख जाएंगे ,पानी ना मिलने के करण. वो जगह  बंजर हो जाएगी, वहां पर एक भी पेड़ नहीं बचेगा। तो वह गुरु कहते हैं तो हमें क्या करना चाहिए। तभी वह शिष्य उस नाली को वापस खोल देता है. तभी गुरु कहते हैं की अब जरा सोचो यदि हम इस नाली को बड़ा कर दें, इस नदी के मुंह से जो पानी आ  रहा है हम इस मुंह को बड़ा कर दें तो क्या होगा। तभी शिष्य कहता है गुरुदेव पानी ज्यादा पानी बगीचे में जाएगा और ज्यादा पानी जान की वजह से पेड़-पौधे खराब हो जाएंगे। तो वो गुरु कहते है तो तुमने इससे क्या सीखा , पानी ज्यादा जाएगा  तो भी पेड़-पौधे खराब हो जाएंगे और यदि कम जाएगा तो वह सुख जाएंगे इसका मतलब ये है एक हद होती है उस हद से ही यदि पानी जाएगा तो ही बगीचा हरा  भारा  पाएगा और यही हमारे शरीर पर लागू होता है हमारे अंदर कामवासना रहेगी हम पुरी तरह इस कामवासना को रोक नहीं सकते यदि यह कामवासना ज्यादा हो जाति है तो हमारे लिए बहुत ज्यादा नुकसान देती है. और यही कामवासना को हम पूरा रोक देंगे तो भी हमारे शरीर में ये नुकसानदायक ही है. ऐसा नहीं है की हम  पुरी तरह कामवासना को रोक देंगे तो कोई बड़ी शक्तियां हमें मिल जाएगी। ऐसी बात भी नहीं है और यदि हम इस कमवासना में डुब जाएंगे तो  हमारे शरीर को नुकसान है. सही तरीके से जीवन जीने का मतलब यह है की हर चीज हद में हो ना की वह चीज ज्यादा हो और ना वो चीज कम हो, क्योंकि तुम कामवासना को छोड़ने के लिए शपथ ले रहे हो तो वो शपथ टूट जा रही है.क्योंकि तुम जोर जबरदस्ती कर रहे हो उस चीज के साथ और जोर जबरदस्ती से  भला इस चीज को कैसे छोड़ जा सकता है, जो की शरीर ने लाखों सालों से अपने आप को ऐसा बनाया है. उसके बाद वो गुरुदेव कहते हैं- पांच ऐसे तरीके बता रहा हूं जिसे तुम कमवासना से लगभग छुटकारा पाओगे अपने ऊपर हावी  नहीं होने दोगे।  
1.  पहले तरीका तुम्हारे देखने का नजरिया -मान  के चलिए की तुम्हारे सामने से एक लड़की गुजरती है, तो तुम दो  नजरों से देखोगे।  पहले तो कमवासना की नजरों से और दूसरा एक इज्जत की नजरों से. एक इंसान की नजर से भले वो औरत है या आदमी,  तुम्हें एक ही नजर से देखना होगा और तुम जब इस पर अपने आप का नियंत्रण  कर लोगे  तो तुम्हारे ऊपर कभी भी कामवासना हावी नहीं होगी क्योंकि सबसे पहले हमारी आंखों से ही कामवासना हमारे अंदर घुसती है, वो विचार हमारे अंदर घुसते हैं और उसके बाद हम इस के बारे  में सोचते रहते हैं. वह विचार हमारे दिमाग से निकलते ही नहीं है हम कामवासना के विचारों के बरे  में ही पड़े रहते हैं और वो ही धीरे-धीरे हमें कामवासना के नुकसान  की तरफ लेकर जाति है.

 दूसरा तरीका है संगत जैसी संग  वैसा ढंग, वैसे तो यह काफी पुरानी कहावत है लेकिन यह 100% सच है. संगति का असर तो होता है अगर तुम ऐसे बुरे लोगों के साथ रहोगे जो अधिकतर कामवासना की बातें कर रहे हो तो उसका असर तुम पर पड़ेगा इसलिए ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहना, बहुत सारे अच्छे लोग भी हैं. हमें हमेशा उनका साथ लेना चाहिए क्योंकि तुम उस लड़के की संगत में आ  गए इसीलिए तुम वहां पर खड़े रहकर देखने लगे और तुम जब देखने लगे तो तुम्हारे मन  में एक अपराधी घुसा क्योंकि तुम गलत कर रहे थे इसीलिए तुम छुप छुप कर देख रहे थे. इसीलिए हमें अच्छी संगत करनी चाहिए और जीस  दिन अच्छी संगत में पड  जाओगे उस से  दिन कभी भी बुरी संगत के बारे  में नहीं सोचोगे। 

तीसरा तरीका है हमेशा अपने आप को व्यस्त रखो कुछ ना  कुछ काम करो , यह कहा जाता है ना यह खाली
दिमाग शैतान का घर होता है. ऐसा अक्सर देखा जाता है की जो लोग अकेलेपन के शिकार होते हैं वह बहुत जल्दी
बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं, इसीलिए अपने दिमाग को शैतान का घर ना बने दो। खुद को किसी  अच्छे काम में हमेशा व्यस्त रखो। खाली समय में आप अपने आप को कुछ रचनात्मक कार्य में व्यस्त कर सकते हो ,कोई
ज्ञानवर्धक पुस्तक पढ़ सकते हो। वो आपको हमेशा बेहतर बनाती  रहेगी।

 अगला है तामसिक आहार का त्याग करें-तामसिक आहार जैसे मांस, मदिरा और सभी प्रकार के नशो  का त्याग करें क्योंकि नशा मनुष्य  को पशुता की और ले जाता है. नशे  की बस में इंसान अंधा हो जाता है, उसे धर्म और अधर्म, नैतिक और अनैतिक और पाप- पुण्य का कोई भी ज्ञान नहीं राहत। हमारे समाज में अधिकतर  अपराध नशे  की वजह से होते हैं इसीलिए नशे  से जितना ज्यादा दूर रह  सको  उतना ही अच्छा है. आप खुद सोचिए जब आप नशे  में अपने शरीर को नियंत्रण नहीं कर पाते हो तो फिर अपने मन  को कैसे नियंत्रण कर पाओगे।

 और लास्ट तरीका है- ऐसा वातावरण जहां पर कामवासना का  वातावरण हो-वहां पर हमें कभी नहीं जाना चाहिए। जहां पर अच्छा वातावरण हो हमें वहीं रहना चाहिए। आजकल ज्यादातर समाज में वातावरण बहुत ही दुसित हो रखा है, अपराध भी इन्हीं बातो  से बढ़ता  है. कामवासना के चक्कर में लोगों की हत्या हो जाति है उनके साथ दुष्कर्म किया जाता है, मार दिया जाता है। यह हमारे समाज का एक ऐसा वातावरण बन चुका है, हमें इन्हीं चीजों से अलग रहना है। हमें अच्छी आदतें हमेशा अपनानी चाहिए और बुरी आदतों को छोड़ना चाहिए और बुरी आदतों को छोड़ने का तरीका एक ही है की उन आदतो  पर ज्यादा ध्यान मत दो.उन्हें छोड़ दो और अच्छी आदतों पर ज्यादा ध्यान दो तभी उन को तुम धीरे-धीरे छोड़ पाओगे। यदि तुम किसी भी आदत को जोर जबरदस्ती छोड़ना चाहोगे तो तुम उसे कभी नहीं छोड़ पाओगे, वो उतनी ही शक्ति के साथ तुम्हारे सामने आकर उभरेगी। उसके बाद शिष्य  कहता है गुरुदेव मैं आप की बातें अच्छे से समझ चुका हूं. उसके बाद गुरु और शिष्य दोनों ही अपने आश्रम में वापस आ  जाते हैं.

  श्री कृष्णा भगवत गीता में कहा है की मन  एक मुंह जोर घोड़े की भाती  चंचल है. ये हमेशा अपनी मनमानी करना चाहता है. परंतु इसे घोड़े के स्वामी आप हैं, घोड़ा आपका स्वामी नहीं है. इसीलिए अगर आपको उसे पर सवार  होकर अपनी मंजिल तक पहुंचाना है तो आप को इस घोड़े को अपने वाश में करना होगा ,इस पर लगाम लगानी होगी वरना बिना लगाम का घोड़ा आप को कहां लेकर जाएगा।आप यह  भी नहीं जानते आप का यह चंचल मन  हमेशा भौतिक और संसारिक  सुखों की क्षणों में भटकता  रहता है परंतु आप का यह कर्तव्य है की बुद्धि पर  विवेक की लगाम लगा कर उसको अपने वाश में रखें। आप को योगाभ्यास और आध्यात्म  के सहारे अपने मन  को वश में करने का प्रयास करना चाहिए और मन  को हमेशा शुद्ध रखना चाहिए, याद रखना वासना एक ऐसी आग  है , जिसको आप जितना बुझा ने की कोशिश करोगे उतनी ही और ज्यादा भडकती है और इसके साथ-साथ आपके  तन और मन में  जीवन भर चलाता   रहेगा, आप को जीवन में कभी शांति नहीं मिलेगी। इसीलिए एक वासना के दलदल से निकाल कर आध्यात्म की और बढ़कर देखिए ,ईश्वर की तरफ बढ़कर देखें ,आप को इतना शांति और सुकून मिलेगा की आप का जीवन धन्य हो जाएगा। मैं जानता हूं की यह इतना आसन नहीं है, इसके लिए आपको निरंतर अभ्यास करना पड़ेगा। अपने दुष्ट मन  को शुद्ध करने के लिए पूजा- पाठ जैसे काम करने होंगे, धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेना पड़ेगा, सत्संग करना पड़ेगा ,यह सब आप को मदद करेंगे आध्यात्म की ओर  ले जान के लिए. मैं आप को यह नहीं का रहा हूं की आप साधु बन जाइए लेकिन घर गिरहस्ती  में रहकर भी आप एक आध्यात्म को महसूस कर सकते हो और बहुत कुछ अपने जीवन में कर  सकते हो, वही असली खुशी होती है. मन  शांत होना ही दुनिया का सबसे बड़ा सुख है. उसके बाद ही हमें असली सुख का अनुभव होता है. पैसा मोह , माया, धन यह सब सुख नहीं है. मन  का  सुख ही  सुकून है.

Saturday 24 June 2023

मन को खाली करना जानो

 

मन को खाली करना जानो - Clear Your Mind | Empty Your Mind




दोस्तों हमारा मन कभी भी विचारों से खाली नहीं  राहत। हमारे मन में हमेशा विचार चलते रहते उठते -बैठते ,खाते-पीते  हमारा मन कभी भी विचारों से खाली नहीं राहत। लेकिन  क्या कोई ऐसा तरीका है जिसे की मनके विचारों को  रोका जा सके. हमारे मन को विचारों से खाली किया जा  सके. आज की कहानी से आप बहुत ही सरल तरीके से  समझ पाओगे की मन को कैसे खाली किया जाए और मन को  अपने वाश में कैसे किया जाए तो चलिए शुरू करते हैं।


एक गुरु का एक शिष्य बहुत ही गहन ध्यान कर रहा था  लेकिन उसका ध्यान नहीं लग रहा था. उसका मन हमेशा विचारों से भरा राहत, उसने अपने मन को  खाली करने की बहुत कोशिश की लेकिन उसकी सारी कोशिश नाकाम हो चुकी थी। तब वो अपने गुरु के पास गया  और उसने अपने गुरु से कहा- गुरुदेव मेरा मन हमेशा विचारों से भरा राहत है। मेरा ध्यान एक  जगह नहीं लग पाता, जब मैं ध्यान करने बैठता हूं  तो मेरा ध्यान दूसरी चीजों पर पहुंच जाता हूं, फिर तीसरी  बार, फिर चौथी पर. ऐसे करते-करते मेरे मन में  हजारों विचार चलते रहते हैं और यह कब होता  है मुझे पता भी नहीं चला. बहुत देर बाद मुझे  इस चीज का एहसास होता है की मैं क्या करने बैठा  था और क्या कर रहा हूं.


गुरुदेव मैं अपने मन को विचारों से खाली कर देना चाहता हूं, मैं चाहता हूं  की मेरे मन में एक भी विचार ना आए. जब मैं चाहूं  मेरे मन में विचार उत्पन्न हो. गुरु ने कहा किसी  भी समस्या का समाधान तब निकलता है जब हम समस्या  की जड़ तक पहुंचते हैं, समस्या को ठीक से समझते  हैं और उसको जानते हैं. जीस मन को तुम खाली करना  चाहते हो क्या तुमने इस मन को थोड़ा बहुत भी जाना  है. गुरुदेव मन को जान्ने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं  जितना जानना चाहता हूं यह मन उतना ही रहस्मयी होता जाता है।  


गुरू ने कहाँ जाओ एक घड़े को छोटे-छोटे पत्थरों से भरकर लेकर आओ.  फिर शिष्य उसे घड़े में छोटे-छोटे पत्थर भर के लेकर आता है  और गुरु के पास रख देता है. गुरु ने कहा इस घड़े को  

तुम अपना मन समझो और इस घड़े में पड़े पत्थरों  को अपने विचार ,अब इस घड़े में और पत्थर डालना शुरू  करो। घड़ा पहले से भरा हुआ था तो थोड़े से ही पत्थर  डालने के बाद वह पत्थर नीचे गिरने लगे तब गुरु ने कहा - अब ध्यान से देखो अब घड़े में पत्थर नहीं समा रहे  हैं बल्कि वह नीचे गिर रहे हैं, क्योंकि यह भर गया.शिष्य तुरंत गुरुदेव से कहा गुरुदेव मैं समझ गया की आप  क्या बताना चाहते हैं, आप बताना चाहते हैं की हमें अपने मन को विचारों से खाली कर देना चाहिए। गुरु  मुस्कुराने लगे और गुरु ने कहा पहले पुरी बात समझ  लो उसके बाद मन को खाली कर देना। गुरु ने कहा हमारा  मन इस घड़े के बिल्कुल उल्टा है घड़े को तुम पत्थर  से भर सकते हो लेकिन मनको विचारों से नहीं भर  पाओगे ,मन हमेशा खाली ही राहत है. गुरुदेव मैं कुछ  समझ नहीं का रहा हूं, मन अगर हमेशा खाली राहत है  तो हमें मन को खाली करने की क्यों जरूर पड़ती है. मन  खाली करने के क्या आवश्यकता। गुरु ने कहा इस घड़े  से सारे पत्थर को एक-एक करके बाहर निकाल दो. 


शिष्य ने ऐसा ही किया, एक-एक करके पत्थर निकालना शुरू  किया, अंत में वो घड़ा खाली हो गया. गुरु ने कहा देखा तुमने एक-एक पत्थर को बाहर निकाला तो वो घड़ा खाली  हो गया. अब तुम इस खड़े में कोई भी पत्थर डाल सकते  हो, दूसरे पत्थर भी डाल सकते हो या इन्हीं पत्थरो को  दोबारा डाल सकते हो ,आधा भर सकते हो या फिर इसे पूरा  भी भर सकते हो. शिष्य ने कहा गुरुदेव मैं भी तो यही का  रहा हूं की मन को खाली करना है यह पत्थर है उन्हें  आसानी से निकाला जा सकता है और घड़े को खाली किया  जा सकता है लेकिन मैं अपने मन को कैसे खाली करूं।  


गुरु ने कहा इस खाली घड़े में एक पत्थर डालो और  दो पत्थर निकालो। शिष्य ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है।  गुरुदेव जब इस गाड़ी में दो पत्थर होगा तभी तो दो  पत्थर निकलेगा ,भला एक डालकर दो कैसे निकालूं। गुरु  ने कहा चलो तो ऐसा करो घड़े में दो पत्थर डालो और  चार पत्थर निकालो। शिष्य ने कहा गुरुदेव ऐसा कैसे हो  सकता है. यह कोई चमत्कारी घड़ा थोड़ी ना है जो एक  डालोगे तो दो निकलेंगे और दो डालोगे तो चार निकलेगा।  


गुरु ने कहा घड़ा चमत्कारी नहीं है लेकिन तुम्हारा  जो मन है वो चमत्कारी है इसमें सिर्फ तुम एक विचार  निकलोगे तो इसके पीछे दो विचार निकलते हैं, जब तुम  दो निकलोगे तो चार निकलते हैं और जब तुम चार निकलोगे  तो 16 निकलते हैं और ऐसे ही करते करते विचारों की एक  लंबी श्रृंखला बन जाति है और तुम यही नहीं रुकते  एक के बाद एक विचार को पढ़ते जाते हो। यह मिट्टी  का घड़ा तो पत्रों से भर जाएगा लेकिन तुम्हारा मन कभी नहीं भरत वह हमेशा खाली और खाली ही राहत है यह  मन की माया है की सब कुछ है लेकिन फिर भी कुछ नहीं।


मैं आपकी बात को समझ रहा हूं लेकिन क्या मैं हमेशा  अपने विचारों के जाल में फंसा रहूंगा क्या? मन की  माया से बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं है.  गुरु ने कहा इस मिट्टी के घड़े को आधा पत्थरों  से भर दो शिष्य ने ऐसा ही किया ,फिर गुरु ने  कहा अब इन पत्थरों में से कोई एक पत्थर को चुनो और  उस पत्थर की एक छोटी सी मूर्ति बनाकर मुझे दो,  मैं जानता हूं की तुम एक अच्छे कलाकार हो। शिष्य  ने एक पत्थर निकाला और उसे पत्थर को तरासने लगा ,फिर  उसे लगा की यह पत्थर अच्छा नहीं है तो उसने तुरंत  दूसरा पत्थर निकाला, उसे उस पत्थर में भी उस को मजा  नहीं आया फिर उसने तीसरा पत्थर निकाला उस का रंग उस को  

अच्छा नहीं लगा फिर उस ने चौथ पत्थर निकाला लेकिन  उसे उस पत्थर में भी उसे कुछ खास नजर नहीं आया.


फिर गुरु ने कहा - जीस पत्थर को तुमने पहले बार निकाला था उस पत्थर  को यह समझकर तरासो की अब तुम्हारे आस पास कोई और  पत्थर नहीं है. तब शिष्य ने उसे पत्थर को तरासना शुरू  किया और उस पत्थर से अपने गुरु की एक अति सुंदर  मूर्ति बनाई और और शिष्य ने गुरु से कहा इस पत्थर   से इतनी सुंदर मूर्ति बन सकती है मैं यह सोच  भी नहीं सकता था. तब गुरु ने कहा जब हमारे पास  विकल्प नहीं होता तब हमारे पास जो भी होता है  ,हम इस में अपनी संपूर्ण ऊर्जा लगाते हैं और इस  से सब से बेहतर बनाते हैं और जब विकल्प होता है  तब हम बस पत्थर को चुनते ही र जाते हैं, मूर्ति  नहीं बन पाती। हमारा मन भी हमारे लिए के विचार  के पीछे हजारों विकल्प खोल देता है और हम एक मुख्य  विचार को छोड़कर उन हजारों विकल्पों में फैंस जाते है।  मैं आपकी बात को अच्छी तरह समझ रहा हूं लेकिन  अब मुझे क्या करना चाहिए मेरा मार्गदर्शन करें।


अपने ध्यान को एकत्रित करो एकाग्रता लो और जो कर रहे  हो उसे अंतिम समझ कर करो ,ऐसे करो की इसके बाद तुम्हें  कुछ नहीं करना और जब दूसरे विचार पर कार्य करो तब  केवल इस पर कार्य करो किसी तीसरी विचार पर मत जाओं।   


मन के मायाजाल से निकालना इतना आसन नहीं है लेकिन  अभ्यास करने से सब कुछ पाया जा सकता है. गुरुदेव मैं  ऐसा ही करूंगा, यह बात समझने के लिए आपका बहुत-बहुत  धन्यवाद गुरुदेव। यह का कर शिष्य वहां से चला जाता  है.


दोस्तों हम सब अपने मन को खाली करने का प्रयास  करते रहते हैं. हमारे मन में जो विचार उठाते रहते  हैं उससे हम परेशान रहते हैं, हम चाहते हैं की यह  विचार कही चले जाए और हम शांत हो जाए लेकिन हम  जितना इन विचारों से भागते हैं यह विचार हमें उतनी  ही जोर से पकड़ लेते हैं क्योंकि हम विचारों को शांत  करने के लिए विचारों का ही उपयोग करते हैं और जिन  विचारों का उपयोग करते हैं वह विचार आपके उन्ही  विचारों से जुड़े होते हैं जिन विचारों को आप छोड़ना  चाहते हो और वह विचार आपको छोड़ना नहीं चाहते तो यह  कैसे संभव होगा की आप शांत हो जाएंगे। यह तभी संभव  हो सकता है जब आप शांत होने की कोशिश भी छोड़ दें  और अपने समस्या के समाधान पर ध्यान दें, एकाग्रता  ले, ध्यान लगाएं और इस बात को समझे की चिंता करने  से समाधान नहीं मिलेगा, चिंतन करने से समाधान मिलेगा। दोस्तों हम अपने मन को शांत कर सकते हैं.


कुछ तरीके  आप अपना सकते हो- जैसे की


1. अपने विचारों को लिखकर  व्यक्त करें। यदि आपके मन में विचारों का सैलाब  उठ रहा है तो उन्हें लिख लेने से आपको सहायता मिलेगी। स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू करें। आप कैसा महसूस कर  रहे हैं क्यों महसूस कर रहे हैं और इसके लिए आप  क्या करना चाहते हैं. यह सारी जानकारी निकाले आपके  पास कोई ऐसा ठोस करण होगा जिस के बरे में आप सोच  रहे हो. इस तरह आपको एक बड़ी उपलब्धि के पाने जितनी  खुशी महसूस होगी फिर भले ही आपने कुछ ना किया हो. इस  रोचक योजना की मदद से आप पुरी तरह से अपने विचारों  को बाहर निकाल सकेंगे। अपनी सारी परेशानियो को एक  पेपर पर लिख ले, यह आप को क्यों परेशान कर रहे हैं।  इस पर विचार करें फिर उसे मोड कर बाहर फेक दें  जी उसे पेपर को फेक दें. और लोगो में पाया गया  है जो लोग अपने विचारों को पेपर पर लिखकर फेक देते  हैं वे उन्हें अपने मन से बाहर निकाल पाते हैं और  बाहर निकालने में वो कामयाब हो जाते हैं और ऐसे लोग  बहुत कम चिंता करते हैं।


2. पहले की बातो को याद  ना करें, बीता हुआ कल कभी भी नहीं आता लेकिन बीते हुए  कल को याद कर ने से मन बेचैन जरूर हो जाता है और फिर  मन को शांत और दिमाग को शांत करना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में अगर किसी की बीते हुई कल में कुछ  बुरा या अच्छा हुआ हो तो उसे याद नहीं करना चाहिए। जब  भी बीते हुेए कल को याद किया जाता है तब तब मन शांत  से बेचैन हो जाता है.


3. अपने सफलता को देखें  जो आप ने अपनी जिंदगी में पाया है. उस के बरे में  सोचे ना की आप को उस बारे में सोचना है जिस  में आप को असफलता मिली। आप ने अपनी जिंदगी में कुछ तो  किया ही होगा जिस में आपको सफलता मिली हो, आप  उसके बरे में सोचें। हमेशा सकारात्मक बातें सोच.


4. अपनी नींद पुरी करें। पुरी नींद ना लेना भी आपके  मन को बेचैन कर सकता है। दिमाग को अशांत कर सकता है।  नींद एक बहुत ही जरूरी हिस्सा होती है शरीर के लिए  लेकिन जब पुरी नींद नहीं होती तो बहुत ही मुश्किल  हो जाति है. अगर सही तरीके से पूरा नींद ना लिया  जाए तो मन बेचैन रहत है. इसीलिए कम से कम 8 घंटे  की नींद जरूर ले.


5. समय-समय  पर आप बाहर घूमे। एक स्थान पर रहने पर मन में बेचैनी  बाढ़ जाति है और मन भी नहीं लगता , मन में तरह-तरह की बेचैनी होने लगती है. अपने मन को  शांत करने के लिए समय-समय पर बाहर घूमते रहना चाहिए  घूमने से हम सभी चिंता को कम कर देते हैं. हम यह भूल  जाते हैं की हमें किसी प्रकार की चिंता है या किसी प्रकार का कोई काम है.



Wednesday 21 June 2023

तुमारा डर काल्पनिक हैं


तुमारा डर काल्पनिक हैं -your fears are imaginary

 बहुत पुरानी बात है एक नगर का राजा हर रोज  अपने राज्य का भ्रमण करने के लिए शाम को घोड़े पर  बैठकर निकलता। एक बार उसे राजा की नजर एक साधु पर  पड़े। वह साधु एक पेड़ के नीचे बैठे रहता , अपने धुन  में मस्त राहत, उसको आसपास की चीजों के बरे में कोई  फिक्र नहीं थी.

उसके पास छोटे बच्चे आते और उस साधु  को कंकर मारते लेकिन वह साधु उन बच्चों पर ध्यान  ही नहीं देता। थोड़ी देर में वो बच्चे वहां से  चले जाते। यह सब घटना वो राजा देख रहा था ,उसके बाद  वो राजा हर रोज भ्रमण के लिए जब भी निकलता वह साधु  को देखता,साधु कभी बांसुरी बजता रहता , कभी नाचता राहता तो कभी आसमान के तारे गिनता रहता और राजा  को यह सब देख कर बहुत खुशी मिलती।

अब राजा का नियम  बन गया जब भी वह भ्रमण के लिए निकलता तो एक बार साधु को जरूर देखता। एक बार वो राजा उन साधु के  पास गया और उनके चरणों में गिर पड़ा और कहा - महाराज  आगे बारिश का मौसम आ रहा है और मैं नहीं चाहता की आप इस पेड़ के नीचे ही बारिश का मौसम निकाले।आप काफी बूढ़े हो यदि आप यहां पर रहे तो आप बीमार पड़ जाओगे । मैं चाहता हूं की आप मेरे राज महल में  चलो. बस राजा ने इतनी सी बात कहीं और वह साधु अपना  झोला लेकर तयार हो गया. राजा को उम्मीद नहीं थी की  वह साधु ऐसा जवाब देगा की उनकी एक शब्द कहने पर ही तयार हो जाएगा। राजा को लगा की यह साधु बहुत  बड़ा ढोंगी है. शायद हो सकता है किसी ने मेरे ऊपर  चाल करने के लिए इसे छोड़ हो. राजा को लगा की साधु  कुछ ऐसा जवाब देगा की राजा मुझे महलों से क्या मतलब,  हम तो साधु है हम तो आसमान को ओढ़ते हैं और धरती को  बिछोना बनाते हैं, हमें राज पाठ की जरूरत नहीं है राजा। राजा ने तो ऐसा जवाब सुनने के लिए साधु को महल चलने  के लिए कहा था, लेकिन राजा की एक आग्रह पर साधु  रावना हो गया। राजा कुछ और कह पाते उससे पहले ही  वह साधु राजा के घोड़े पर बैठ गया और कहा की चलो  राजा। अब राजा के मन में यह दुख सम गया की जरूर यह मतलबी है और मैं तो बस इस साधु को ऐसे ही कह रहा था अब राजा को लगा की फालतू की आफ्त अपने ऊपर ले ली मैंने। अब वो साधु घोड़े पर बैठा था और राजा को पहले बार अपने महल पैदल जाना पड़ा।  नगर के लोग भी देख रहे थे फिर वो राजा और साधु महल में पहुंचे, जैसे ही वह महल में पहुंचे उसे राजा ने कहा साधु बाबा मैं चाहता हूं की बगीचे में आपके लिए एक झोपड़ी बनवा दे   ताकि आप वहीं पर बैठकर भगवान का नाम ले. साधु ने  कहा राजा नहीं, मैं आपके महल में रहना चाहता हूं, भला मैं भी तो देखूं की महलों में कैसे रहा जाता है. अब राजा के छाती पर सांप लौट गया। साधु कुछ इस तरीके से राहता जैसे वह इस नगर का राजा  हो। राजा से भी अच्छे कपड़े पहनता राजा से भी अच्छा  खाना खाता और राजा से भी शान से रहने लगा और राजा  को यह सब देखकर बहुत दुख होता। राजा सोचता की मैं तो इसको एक सच्चा साधु समझ रहा था, मैं तो इसको हीरा समझ  रहा था, लेकिन यह तो अंदर से लोहा निकाला ,ऊपर बस सोनी  की परत चढ़ी है, यह अंदर से बहुत ही बड़ा ढोंगी बाबा है. अब राजा हर रोज दुखी रहने लगा अब वह साधु बाबा का  नाम भी नहीं ले रहा था. ऐसे करते-करते 6 महीने गुजर  गए। एक बार राजा ने बहुत हिम्मत करके वह साधु से कहा की महाराज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं ,साधु ने  कहा जी जरूर पूछिए- राजा ने कहा महाराज, आप  मेरी तरह खाना खाते हैं, आप मेरी तरह कपड़े पहनते हैं,  मेरी तरह आप सोते हैं, फिर आप मे और मुझ में फर्क  क्या है, यह बात सुनकर वह साधु बोला-राजा मुझे पता है की यह सवाल तुम्हारे मन में आज से नहीं बहुत दिनों  से खटक रहा है, लेकिन भला इतने दिन तक तुमने यह बात  छुपा कर क्यों रखी. यदि तुम पहले यह बात मुझे बोल  देता तो इतने दिन तक तुम्हें दुखी नहीं रहना पड़ता  तुम कितने चिंता अपने मन में छुपाते हो राजा। मुझे  पता है, मैं जब से यहां आया हूं तु दुखी रहने लगा है। मैं तुम्हें इस सवाल का जवाब जरूर दूंगा, लेकिन मैं यहां नहीं दूंगा। कल सुबह मेरे साथ चलना और तुम्हारे  नगर की नदी के उस पार मैं तुम्हें इस सवाल का जवाब  दूंगा। राजा सोच ने लगा की जरूर यह बाबा बहुत बड़ा  ढोंगी है और इसे पता है की यदि इसका यहां पर पर्दा फास हो गया तो  मैं इसे पकड़ ना लूं ,इसलिए नदी के उस पार मुझे अपने  सच्चाई बता ये गा लेकिन मुझे भला संतो से क्या दुश्मनी  है. मैं तो इसे छोड़ दूंगा कम से कम आफत टले लेगी। यह  सोचकर राजा सो गया, जब राजा सुबह उठा तो साधु पहले से ही अपने बांसुरी और झोला लेकर तैयार खड़ा था और  मीठी-मीठी बांसुरी बजा रहा था. जैसे ही राजा साधु के  पास पहुंच तो साधु ने कहा चले महाराज और दोनों ही  नगर से निकाल गए. वह आगे चलते जा रहे थे नदी भी पर  हो चुके थे, लेकिन साधु रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. तभी राजा उस साधु से कहते हैं महाराज अब रुक जाइए मैं और आगे नहीं चल सकता। साधु कहता है की राजा  चलो मेरे साथ मैं आगे जाता हूं तभी वो राजा कहता  है महाराज मैं आगे नहीं चल सकता मेरा राज पाठ मे रे  बीबी, बच्चे ,मेरा परिवार पीछे छुठ गया है. मैं आपकी  तरह साधु थोड़ी ना हूं, जो झोला लेकर चल दूँगा। मेरी  पीछे जिम्मेदारियां है, मैं आपके साथ नहीं  चल सकता। तभी वह साधु कहता है बस राजा इतना ही फर्क  है तुझ में और मुझमें में, मैं साधु हूं मैं कही पर भी चलूंगा मुझे किसी भी चीज की कोई फिक्र नहीं  है. मैं उस पेड़ के नीचे जब था तब भी मैं इतना  ही  खुश था और तुम्हारे राजमहल में रहा तब भी मैं इतना ही  खुश था और आज मैं तुम्हें छोड़कर जा रहा हूं तू भी मैं इतना ही खुश हूं। मैं कभी भी किसी भी स्थिति में दुखी नहीं राहत लेकिन तुम्हारा जीवन परिस्थितियों पर निर्भर करता है तुम्हारी परिस्थितियों कैसी है  उसके हिसाब से तुम जीते हो, जैसे -स्थिति खराब है  तो तुम दुखी हो जाते हो और परिस्थितियों अच्छी है  तो तुम खुश हो जाते हो. लेकिन हमें परिस्थितियों से  फर्क नहीं पड़ता। मेरी बांसुरी उस पेड़ के नीचे  भी इतनी सुरीली बजती , तुम्हारे महल में भी इतनी  ही सुरीली बजती और आज मैं जा रहा हूं तो भी मेरी बांसुरी इतनी ही सुरीली बजेगी। मुझे किसी भी स्थिति  में दुख या सुख नहीं मिलता ना मुझे इसका एहसास होता  है, मैं हर स्थिति में खुशी रहत हूं. यह बात सुनकर वो राजा सोचने लगा अरे कितने अनमोल को खो दिया मैंने  इतने दिन साथ में रहकर भी मेरे साधु की असलियत नहीं  जान सका. ये साधु तो हीरा निकाला इतने दिन साथ रह कर  मैं इसके साथ भजन कीर्तन भी नहीं कर पाया ,करता भी  क्या खाक मैं तो इसको ढोंगी समझ रहा था. लेकिन यह तो  बहुत ही अद्भुत आदमी निकाला ,यह सोचकर वो राजा साधु  के चरणों में गिर पड़ा और कहा के साधु बाबा मैं आपको जाने नहीं दूंगा तभी वो साधु कहते हैं सोच लो राजा यह  घोड़ा यही पर खड़ा है. मैं तो वापस चलूंगा लेकिन फिर तुम चिंता में पड़े रहोगे, फिर तुम दुखी हो जाओगे। यह  सुन कर उस राजा के मन में फिर वही विचार आया ,यह साधु  तो फिर से मान गया. यह तो फिर मेरे साथ चलेगा, भला यह  कैसा साधु है. लेकिन वह साधु राजा को देखते हुए बोला  लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि तुम कभी नहीं  सुधारने वाला मैं तुम्हारे महल नहीं चलूंगा बस तुम  खुश रहना, यह कहते हुए साधु बाबा वहा से चले गए और राजा  बस उसको देखाता ही र गया.


दोस्तों हमारे जीवन ने यह चीज  बहुत मायने रखती है की हम जैसे स्थिति होती है वैसे ही  हम हो जाते हैं ,जब परिस्थितियों खराब चलती है तो हम  दुखी हो जाते हैं, जब परिस्थितियों अच्छी चलती है तो  हम खुश हो जाते हैं. ऐसा लगता है जैसे हम अपने जीवन  को नहीं चला रहे, हमारी परिस्थितियों हमारे जीवन को  चला रहे हैं. आप अपने जीवन में जरूर अनुसरण करना इस  बारे में एक बार जरूर सोचना की आखिर ऐसा होता क्यों  है. यह तो हमको पता है की हमेशा हमारे पास अच्छी  परिस्थितियों नहीं चल शक्ति और यह भी हमें पता है  की हमारे पास हमेशा बुरी परिस्थितियों भी नहीं चलते  रहेगी ,अच्छी आई है तो बुरी भी आएगी और बुरी आई है  तो अच्छी भी आएगी। लेकिन फिर हमें दुखी और सुखी होने  का क्या मतलब क्योंकि परिस्थितियों तो बदलती रहती  है और हमें पता है की थोड़े दिन बाद यह परिस्थितियों  बादल जाएगी। लेकिन फिर भी हम दुखी और सुखी होते रहते  हैं और हमें कभी कभी यह भी लगता है की सुख के दिन  तो बहुत जल्दी गुर्जर जाते हैं दुख के दिन गुजरते  ही नहीं। सच्चाई तो यह है की हम दुख की तरफ ज्यादा  ध्यान देते हैं और सुख की तरफ कम ध्यान देते हैं,  इसीलिए हमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन में खराब  परिस्थितियों बहुत दिनों तक रहती है और खुशी वाली  परिस्थितियों बहुत कम रहती है। लेकिन यह बात आप अपने  जीवन में जरूर सोचना क्योंकि मैं हर कोई बात आपको नहीं बता सकता, आपको खुद इस चीज को अनुभव  करना होगा। तभी आप इस चीज को समझ पाओगे की हमारी  जिंदगी की परिस्थितियों हमें चला रही है या हम खुद  अपने जीवन को चला रहे हैं और यदि हम परिस्थितियों पर  निर्भर है तो हमारी खुशी और दुख दोनों ही दूसरों  पर निर्भर करता है. परिस्थितियों पर हमारा जीवन  निर्भर करता है तो कोई भी इंसान हमें दुखी या  खुश कर सकता है इसीलिए हमें हमारी परिस्थितियों  को समझना होगा हमें हमारी जीवन को समझना होगा। हमें  दोनों ही परिस्थितियों को एक ही नजर से देखना होगा  तभी शायद हम जीवन की असली पहचान कर पाएंगे 

उम्मीद  है दोस्तों यह कहानी आपको पसंद आई होगी 


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