Tuesday 27 June 2023

कामवासना को ताकत बनाओ -

कामवासना को ताकत बनाओ 

दोस्तों अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है की जब हम किसी बुरी  आदत को अपनाना चाहते हैं तो बड़ा जल्दी अपना लेते हैं और उसे छोड़ना हो तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है. वहीं पर अच्छी आदत को अपनाना हो तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है और उसको छोड़ना हो तो बड़ा जल्दी छोड़ देते हैं. जैसे की एक लड़का सिगरेट पिता है और यदि उनकी दोस्ती दो  सिगरेट ना पीने वाले लड़कों के साथ हो जाति है तो वहां पर क्या सोचा  है क्या होगा। होना तो यह चाहिए की अच्छे लोगों की संख्या दो है इसलिए वो एक लड़का सिगरेट छोड़ देनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता। वहां पर वो दो लड़के भी सिगरेट पीना शुरू कर देंगे यानी की बुरी आदतें हमारे अंदर बहुत ही जल्दी आ  जाति है और अच्छी आदतों को हमें मेहनत करके अपने अंदर लाना पड़ता है और यही कामवासना के संबंध में हमारे साथ होता है. हम कामवासना को जोर जबरदस्ती से छोड़ना चाहते हैं और जब हम ऐसा करते हैं तो वह और ज्यादा शक्ति के साथ उभर कर आती  है.हम छोड़ नहीं पाते हैं चाहे कितने भी मेहनत कर ले।  लेकिन दोस्तों हमें कामवासना को छोड़ना नहीं है,छोड़ेंगे तो उसको छोड़ नहीं पाएंगे क्योंकि लाखों सालों में इस शरीर ने मेहनत करके अपने आप को इस काबिल बनाया है तो भला में इतने जल्दी उसको छोड़ कैसे देंगा  बल्कि हमें कामवासना को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है. इस कहानी में कामवासना के बरे  में आपको पुरी जानकारी मिल जाएगी और उस  को हावी होने से कैसे रॉक जाए वो भी आप जाने  वाले हो. तो चलिए शुरू करते हैं.
 
बहुत पुरानी बात है एक आश्रम में एक गुरु रहा करते थे। वह अपने शिष्यों को शिक्षा देते और उनके बाद उनको गांव में भेजते भिक्षा मांगने के लिए.ऐसे ही एक शिष्य भिक्षा मांगने के लिए गांव की तरफ जा रहा था तभी वो देखा है की तालाब के पास एक लड़का छुपकर कुछ देख रहा था. तभी वह शिष्य उसे लड़के के पास जाता है और कहता है भाई तुम यहां पर छुपकर क्या देख रहे हो. तभी वो लड़का कहता है की इधर आओ मैं तुम्हें बताता हूं वो लड़का कहता है की देखो तो  नदी  के किनारे पर्रिया  बढ़िया ना रही है कितनी खूबसूरत लड़कियां ना रही है. देखो तो जरा -वो शिष्य छुप कर जब देखता  है तो वो कहता है की इस में कौन सी नइ  बात है वो तो अपने वस्त्र धो  रही है और  नहा रही है। वो लड़का कहता है- क्या तुम्हें उन  लड़कियों को देखकर कुछ हो नहीं रहा है. तभी वो शिष्य वापस उन लड़कियों की तरफ देख ता  है और अब वो भी छुप ने लगा जैसे की कोई अपराधी छुप  रहा हो और वो छुप कर देखने लगा और धीरे-धीरे उससे कुछ चीजो  को देखने में बड़ा मजा आने लगा और वो जब भी  भिक्षा मांगने जाता तब  भी उनके दिमाग में यही चला राहत।
आश्रम में आता तो भी यही चलता  राहत। अब धीरे-धीरे गुरु को इस चीज का पता चलने लगा, यह  कुछ अलग
व्यवहार करने लगा है ,आखिर क्या बात है? एक दिन ऐसे ही  शिष्य  भिक्षा मांगने के लिए निकाला तभी गुरु उनके पीछे-पीछे आते हैं. तभी वह नदी के किनारे जाता है और एक लड़के के साथ खड़े रह कर छुप  कर लड़कियों
को देख रहा था. तभी वो गुरु आते हैं और उस के पीछे आकर खड़े हो गए. तभी वो गुरु कहते हैं क्या इन बच्चियों 
से भी तुम्हें भिक्षा लेनी  है. यह आवाज सुन कर शिष्य के रोंगटे खड़े हो गए वो तुरंत पीछे मुड़कर देखता  है की वह तो उनके गुरु थे। पास में जो लड़का खड़ा था वह तो वहां से भाग गया और वो शिष्य कहता है गुरु देव मैं तो अभी- अभी आया हूं. मैं तो बस ऐसे ही देख रहा था. मेरा वो कारण नहीं है देखने का जो आप सोच रहे हो और वो शिष्य  अपने गुरु के सामने बहुत ज्यादा लजित हो ता है  और वो दोनों ही आश्रम में आ  जाते हैं. तभी वो गुरु कहते हैं की मुझे यह बात बताओ की तुम ने अपने शपथ कितनी बार तोड़ी है तभी  शिष्य  कहता है गुरुदेव मैंने बहुत बार शपथ  तोड़ी और बहुत बार बड़ी ताकत के साथ शपथ भी ली लेकिन बहुत ही जल्दी छुट  जाति है. बहुत जल्दी मुझ से  शपथ टूट जाति है आखिर में क्या करूं गुरुदेव। 

तभी वह गुरु  शिष्य को  लेकर एक बगीचे में जाते हैं और कहते हैं की अब जरा यहां पर ध्यान दो नदी के बहाव  से यहां पर पानी आता है इस नाली में और नाली से फिर पेड़ों तक पानी पहुंचता है. अब जरा इस पानी को  रोक कर दिखाओ। तभी  शिष्य  कहता है यह तो बड़ा आसन है गुरुदेव ,यही पर पत्थर रख दो यह पानी रुक जाएगा। तभी वह शिष्य बहुत सारे पत्थर  लेकर आता है। उस नाली के पानी को रोकने के लिए वहां पर पत्थर रख देता है तभी देखा है की वो नाली का पानी बढ़ गया और पास में से पानी जाने  लगा. तभी वो गुरुदेव कहते हैं की यदि मैं शपथ लेता  हूं कि इस पानी को मैं रोक दूंगा तो क्या मैं इस पानी को नहीं रोक पाऊंगा। तभी वो शिष्य कहता है नही  गुरुदेव ऐसी बात नहीं है, मैं अभी इस पानी को रोक के दिखता हूं और आप की शपथ पुरी करके दिखता हूं. तभी वो शिष्य एक  बड़ा पत्थर  लेकर आता है और उसे  नाली के ऊपर रख देता है, कहता है की अब देखिए गुरुदेव आप की  शपथ पुरी हो गई. तभी गुरु कहते हैं की जरा ध्यान दो पानी उस नाली में बाढ़ रहा है अब धीरे-धीरे यह पानी पास में से आना शुरू हो जाएगा, लेकिन पानी रुकेगा नहीं।लेकिन जरा तुम सोचो यदि हम जहां से नदी से पानी आ  रहा है यदि वहीं से रोक दे तो क्या पानी आगे आ पाएगा।  बिल्कुल सही बात कहीं आप ने यदि हम पानी के असली करण को ही रोक देंगे तो पानी आएगा ही नहीं। शिष्य और गुरुदेव दोनों नदी के किनारे जाते हैं  जहां से उस नाली में पानी आ  रहा था, वहीं पर बड़े-बड़े पत्थर रख के पानी के वहाव  को  रोक देता है और कहता है गुरु देव मैंने आप की शपथ पुरी कर दी. अब आप देखिए पानी को रोक दिया गया.तभी वो गुरुदेव कहते हैं की अब जरा सोचो यदि  नाली से पानी  उन पेड़ों तक नहीं जाएगा, उन पेड़ों का क्या होगा।  शिष्य कहता है गुरुदेव फिर तो पेड़ सुख जाएंगे ,पानी ना मिलने के करण. वो जगह  बंजर हो जाएगी, वहां पर एक भी पेड़ नहीं बचेगा। तो वह गुरु कहते हैं तो हमें क्या करना चाहिए। तभी वह शिष्य उस नाली को वापस खोल देता है. तभी गुरु कहते हैं की अब जरा सोचो यदि हम इस नाली को बड़ा कर दें, इस नदी के मुंह से जो पानी आ  रहा है हम इस मुंह को बड़ा कर दें तो क्या होगा। तभी शिष्य कहता है गुरुदेव पानी ज्यादा पानी बगीचे में जाएगा और ज्यादा पानी जान की वजह से पेड़-पौधे खराब हो जाएंगे। तो वो गुरु कहते है तो तुमने इससे क्या सीखा , पानी ज्यादा जाएगा  तो भी पेड़-पौधे खराब हो जाएंगे और यदि कम जाएगा तो वह सुख जाएंगे इसका मतलब ये है एक हद होती है उस हद से ही यदि पानी जाएगा तो ही बगीचा हरा  भारा  पाएगा और यही हमारे शरीर पर लागू होता है हमारे अंदर कामवासना रहेगी हम पुरी तरह इस कामवासना को रोक नहीं सकते यदि यह कामवासना ज्यादा हो जाति है तो हमारे लिए बहुत ज्यादा नुकसान देती है. और यही कामवासना को हम पूरा रोक देंगे तो भी हमारे शरीर में ये नुकसानदायक ही है. ऐसा नहीं है की हम  पुरी तरह कामवासना को रोक देंगे तो कोई बड़ी शक्तियां हमें मिल जाएगी। ऐसी बात भी नहीं है और यदि हम इस कमवासना में डुब जाएंगे तो  हमारे शरीर को नुकसान है. सही तरीके से जीवन जीने का मतलब यह है की हर चीज हद में हो ना की वह चीज ज्यादा हो और ना वो चीज कम हो, क्योंकि तुम कामवासना को छोड़ने के लिए शपथ ले रहे हो तो वो शपथ टूट जा रही है.क्योंकि तुम जोर जबरदस्ती कर रहे हो उस चीज के साथ और जोर जबरदस्ती से  भला इस चीज को कैसे छोड़ जा सकता है, जो की शरीर ने लाखों सालों से अपने आप को ऐसा बनाया है. उसके बाद वो गुरुदेव कहते हैं- पांच ऐसे तरीके बता रहा हूं जिसे तुम कमवासना से लगभग छुटकारा पाओगे अपने ऊपर हावी  नहीं होने दोगे।  
1.  पहले तरीका तुम्हारे देखने का नजरिया -मान  के चलिए की तुम्हारे सामने से एक लड़की गुजरती है, तो तुम दो  नजरों से देखोगे।  पहले तो कमवासना की नजरों से और दूसरा एक इज्जत की नजरों से. एक इंसान की नजर से भले वो औरत है या आदमी,  तुम्हें एक ही नजर से देखना होगा और तुम जब इस पर अपने आप का नियंत्रण  कर लोगे  तो तुम्हारे ऊपर कभी भी कामवासना हावी नहीं होगी क्योंकि सबसे पहले हमारी आंखों से ही कामवासना हमारे अंदर घुसती है, वो विचार हमारे अंदर घुसते हैं और उसके बाद हम इस के बारे  में सोचते रहते हैं. वह विचार हमारे दिमाग से निकलते ही नहीं है हम कामवासना के विचारों के बरे  में ही पड़े रहते हैं और वो ही धीरे-धीरे हमें कामवासना के नुकसान  की तरफ लेकर जाति है.

 दूसरा तरीका है संगत जैसी संग  वैसा ढंग, वैसे तो यह काफी पुरानी कहावत है लेकिन यह 100% सच है. संगति का असर तो होता है अगर तुम ऐसे बुरे लोगों के साथ रहोगे जो अधिकतर कामवासना की बातें कर रहे हो तो उसका असर तुम पर पड़ेगा इसलिए ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहना, बहुत सारे अच्छे लोग भी हैं. हमें हमेशा उनका साथ लेना चाहिए क्योंकि तुम उस लड़के की संगत में आ  गए इसीलिए तुम वहां पर खड़े रहकर देखने लगे और तुम जब देखने लगे तो तुम्हारे मन  में एक अपराधी घुसा क्योंकि तुम गलत कर रहे थे इसीलिए तुम छुप छुप कर देख रहे थे. इसीलिए हमें अच्छी संगत करनी चाहिए और जीस  दिन अच्छी संगत में पड  जाओगे उस से  दिन कभी भी बुरी संगत के बारे  में नहीं सोचोगे। 

तीसरा तरीका है हमेशा अपने आप को व्यस्त रखो कुछ ना  कुछ काम करो , यह कहा जाता है ना यह खाली
दिमाग शैतान का घर होता है. ऐसा अक्सर देखा जाता है की जो लोग अकेलेपन के शिकार होते हैं वह बहुत जल्दी
बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं, इसीलिए अपने दिमाग को शैतान का घर ना बने दो। खुद को किसी  अच्छे काम में हमेशा व्यस्त रखो। खाली समय में आप अपने आप को कुछ रचनात्मक कार्य में व्यस्त कर सकते हो ,कोई
ज्ञानवर्धक पुस्तक पढ़ सकते हो। वो आपको हमेशा बेहतर बनाती  रहेगी।

 अगला है तामसिक आहार का त्याग करें-तामसिक आहार जैसे मांस, मदिरा और सभी प्रकार के नशो  का त्याग करें क्योंकि नशा मनुष्य  को पशुता की और ले जाता है. नशे  की बस में इंसान अंधा हो जाता है, उसे धर्म और अधर्म, नैतिक और अनैतिक और पाप- पुण्य का कोई भी ज्ञान नहीं राहत। हमारे समाज में अधिकतर  अपराध नशे  की वजह से होते हैं इसीलिए नशे  से जितना ज्यादा दूर रह  सको  उतना ही अच्छा है. आप खुद सोचिए जब आप नशे  में अपने शरीर को नियंत्रण नहीं कर पाते हो तो फिर अपने मन  को कैसे नियंत्रण कर पाओगे।

 और लास्ट तरीका है- ऐसा वातावरण जहां पर कामवासना का  वातावरण हो-वहां पर हमें कभी नहीं जाना चाहिए। जहां पर अच्छा वातावरण हो हमें वहीं रहना चाहिए। आजकल ज्यादातर समाज में वातावरण बहुत ही दुसित हो रखा है, अपराध भी इन्हीं बातो  से बढ़ता  है. कामवासना के चक्कर में लोगों की हत्या हो जाति है उनके साथ दुष्कर्म किया जाता है, मार दिया जाता है। यह हमारे समाज का एक ऐसा वातावरण बन चुका है, हमें इन्हीं चीजों से अलग रहना है। हमें अच्छी आदतें हमेशा अपनानी चाहिए और बुरी आदतों को छोड़ना चाहिए और बुरी आदतों को छोड़ने का तरीका एक ही है की उन आदतो  पर ज्यादा ध्यान मत दो.उन्हें छोड़ दो और अच्छी आदतों पर ज्यादा ध्यान दो तभी उन को तुम धीरे-धीरे छोड़ पाओगे। यदि तुम किसी भी आदत को जोर जबरदस्ती छोड़ना चाहोगे तो तुम उसे कभी नहीं छोड़ पाओगे, वो उतनी ही शक्ति के साथ तुम्हारे सामने आकर उभरेगी। उसके बाद शिष्य  कहता है गुरुदेव मैं आप की बातें अच्छे से समझ चुका हूं. उसके बाद गुरु और शिष्य दोनों ही अपने आश्रम में वापस आ  जाते हैं.

  श्री कृष्णा भगवत गीता में कहा है की मन  एक मुंह जोर घोड़े की भाती  चंचल है. ये हमेशा अपनी मनमानी करना चाहता है. परंतु इसे घोड़े के स्वामी आप हैं, घोड़ा आपका स्वामी नहीं है. इसीलिए अगर आपको उसे पर सवार  होकर अपनी मंजिल तक पहुंचाना है तो आप को इस घोड़े को अपने वाश में करना होगा ,इस पर लगाम लगानी होगी वरना बिना लगाम का घोड़ा आप को कहां लेकर जाएगा।आप यह  भी नहीं जानते आप का यह चंचल मन  हमेशा भौतिक और संसारिक  सुखों की क्षणों में भटकता  रहता है परंतु आप का यह कर्तव्य है की बुद्धि पर  विवेक की लगाम लगा कर उसको अपने वाश में रखें। आप को योगाभ्यास और आध्यात्म  के सहारे अपने मन  को वश में करने का प्रयास करना चाहिए और मन  को हमेशा शुद्ध रखना चाहिए, याद रखना वासना एक ऐसी आग  है , जिसको आप जितना बुझा ने की कोशिश करोगे उतनी ही और ज्यादा भडकती है और इसके साथ-साथ आपके  तन और मन में  जीवन भर चलाता   रहेगा, आप को जीवन में कभी शांति नहीं मिलेगी। इसीलिए एक वासना के दलदल से निकाल कर आध्यात्म की और बढ़कर देखिए ,ईश्वर की तरफ बढ़कर देखें ,आप को इतना शांति और सुकून मिलेगा की आप का जीवन धन्य हो जाएगा। मैं जानता हूं की यह इतना आसन नहीं है, इसके लिए आपको निरंतर अभ्यास करना पड़ेगा। अपने दुष्ट मन  को शुद्ध करने के लिए पूजा- पाठ जैसे काम करने होंगे, धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेना पड़ेगा, सत्संग करना पड़ेगा ,यह सब आप को मदद करेंगे आध्यात्म की ओर  ले जान के लिए. मैं आप को यह नहीं का रहा हूं की आप साधु बन जाइए लेकिन घर गिरहस्ती  में रहकर भी आप एक आध्यात्म को महसूस कर सकते हो और बहुत कुछ अपने जीवन में कर  सकते हो, वही असली खुशी होती है. मन  शांत होना ही दुनिया का सबसे बड़ा सुख है. उसके बाद ही हमें असली सुख का अनुभव होता है. पैसा मोह , माया, धन यह सब सुख नहीं है. मन  का  सुख ही  सुकून है.

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