Wednesday 21 June 2023

तुमारा डर काल्पनिक हैं


तुमारा डर काल्पनिक हैं -your fears are imaginary

 बहुत पुरानी बात है एक नगर का राजा हर रोज  अपने राज्य का भ्रमण करने के लिए शाम को घोड़े पर  बैठकर निकलता। एक बार उसे राजा की नजर एक साधु पर  पड़े। वह साधु एक पेड़ के नीचे बैठे रहता , अपने धुन  में मस्त राहत, उसको आसपास की चीजों के बरे में कोई  फिक्र नहीं थी.

उसके पास छोटे बच्चे आते और उस साधु  को कंकर मारते लेकिन वह साधु उन बच्चों पर ध्यान  ही नहीं देता। थोड़ी देर में वो बच्चे वहां से  चले जाते। यह सब घटना वो राजा देख रहा था ,उसके बाद  वो राजा हर रोज भ्रमण के लिए जब भी निकलता वह साधु  को देखता,साधु कभी बांसुरी बजता रहता , कभी नाचता राहता तो कभी आसमान के तारे गिनता रहता और राजा  को यह सब देख कर बहुत खुशी मिलती।

अब राजा का नियम  बन गया जब भी वह भ्रमण के लिए निकलता तो एक बार साधु को जरूर देखता। एक बार वो राजा उन साधु के  पास गया और उनके चरणों में गिर पड़ा और कहा - महाराज  आगे बारिश का मौसम आ रहा है और मैं नहीं चाहता की आप इस पेड़ के नीचे ही बारिश का मौसम निकाले।आप काफी बूढ़े हो यदि आप यहां पर रहे तो आप बीमार पड़ जाओगे । मैं चाहता हूं की आप मेरे राज महल में  चलो. बस राजा ने इतनी सी बात कहीं और वह साधु अपना  झोला लेकर तयार हो गया. राजा को उम्मीद नहीं थी की  वह साधु ऐसा जवाब देगा की उनकी एक शब्द कहने पर ही तयार हो जाएगा। राजा को लगा की यह साधु बहुत  बड़ा ढोंगी है. शायद हो सकता है किसी ने मेरे ऊपर  चाल करने के लिए इसे छोड़ हो. राजा को लगा की साधु  कुछ ऐसा जवाब देगा की राजा मुझे महलों से क्या मतलब,  हम तो साधु है हम तो आसमान को ओढ़ते हैं और धरती को  बिछोना बनाते हैं, हमें राज पाठ की जरूरत नहीं है राजा। राजा ने तो ऐसा जवाब सुनने के लिए साधु को महल चलने  के लिए कहा था, लेकिन राजा की एक आग्रह पर साधु  रावना हो गया। राजा कुछ और कह पाते उससे पहले ही  वह साधु राजा के घोड़े पर बैठ गया और कहा की चलो  राजा। अब राजा के मन में यह दुख सम गया की जरूर यह मतलबी है और मैं तो बस इस साधु को ऐसे ही कह रहा था अब राजा को लगा की फालतू की आफ्त अपने ऊपर ले ली मैंने। अब वो साधु घोड़े पर बैठा था और राजा को पहले बार अपने महल पैदल जाना पड़ा।  नगर के लोग भी देख रहे थे फिर वो राजा और साधु महल में पहुंचे, जैसे ही वह महल में पहुंचे उसे राजा ने कहा साधु बाबा मैं चाहता हूं की बगीचे में आपके लिए एक झोपड़ी बनवा दे   ताकि आप वहीं पर बैठकर भगवान का नाम ले. साधु ने  कहा राजा नहीं, मैं आपके महल में रहना चाहता हूं, भला मैं भी तो देखूं की महलों में कैसे रहा जाता है. अब राजा के छाती पर सांप लौट गया। साधु कुछ इस तरीके से राहता जैसे वह इस नगर का राजा  हो। राजा से भी अच्छे कपड़े पहनता राजा से भी अच्छा  खाना खाता और राजा से भी शान से रहने लगा और राजा  को यह सब देखकर बहुत दुख होता। राजा सोचता की मैं तो इसको एक सच्चा साधु समझ रहा था, मैं तो इसको हीरा समझ  रहा था, लेकिन यह तो अंदर से लोहा निकाला ,ऊपर बस सोनी  की परत चढ़ी है, यह अंदर से बहुत ही बड़ा ढोंगी बाबा है. अब राजा हर रोज दुखी रहने लगा अब वह साधु बाबा का  नाम भी नहीं ले रहा था. ऐसे करते-करते 6 महीने गुजर  गए। एक बार राजा ने बहुत हिम्मत करके वह साधु से कहा की महाराज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं ,साधु ने  कहा जी जरूर पूछिए- राजा ने कहा महाराज, आप  मेरी तरह खाना खाते हैं, आप मेरी तरह कपड़े पहनते हैं,  मेरी तरह आप सोते हैं, फिर आप मे और मुझ में फर्क  क्या है, यह बात सुनकर वह साधु बोला-राजा मुझे पता है की यह सवाल तुम्हारे मन में आज से नहीं बहुत दिनों  से खटक रहा है, लेकिन भला इतने दिन तक तुमने यह बात  छुपा कर क्यों रखी. यदि तुम पहले यह बात मुझे बोल  देता तो इतने दिन तक तुम्हें दुखी नहीं रहना पड़ता  तुम कितने चिंता अपने मन में छुपाते हो राजा। मुझे  पता है, मैं जब से यहां आया हूं तु दुखी रहने लगा है। मैं तुम्हें इस सवाल का जवाब जरूर दूंगा, लेकिन मैं यहां नहीं दूंगा। कल सुबह मेरे साथ चलना और तुम्हारे  नगर की नदी के उस पार मैं तुम्हें इस सवाल का जवाब  दूंगा। राजा सोच ने लगा की जरूर यह बाबा बहुत बड़ा  ढोंगी है और इसे पता है की यदि इसका यहां पर पर्दा फास हो गया तो  मैं इसे पकड़ ना लूं ,इसलिए नदी के उस पार मुझे अपने  सच्चाई बता ये गा लेकिन मुझे भला संतो से क्या दुश्मनी  है. मैं तो इसे छोड़ दूंगा कम से कम आफत टले लेगी। यह  सोचकर राजा सो गया, जब राजा सुबह उठा तो साधु पहले से ही अपने बांसुरी और झोला लेकर तैयार खड़ा था और  मीठी-मीठी बांसुरी बजा रहा था. जैसे ही राजा साधु के  पास पहुंच तो साधु ने कहा चले महाराज और दोनों ही  नगर से निकाल गए. वह आगे चलते जा रहे थे नदी भी पर  हो चुके थे, लेकिन साधु रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. तभी राजा उस साधु से कहते हैं महाराज अब रुक जाइए मैं और आगे नहीं चल सकता। साधु कहता है की राजा  चलो मेरे साथ मैं आगे जाता हूं तभी वो राजा कहता  है महाराज मैं आगे नहीं चल सकता मेरा राज पाठ मे रे  बीबी, बच्चे ,मेरा परिवार पीछे छुठ गया है. मैं आपकी  तरह साधु थोड़ी ना हूं, जो झोला लेकर चल दूँगा। मेरी  पीछे जिम्मेदारियां है, मैं आपके साथ नहीं  चल सकता। तभी वह साधु कहता है बस राजा इतना ही फर्क  है तुझ में और मुझमें में, मैं साधु हूं मैं कही पर भी चलूंगा मुझे किसी भी चीज की कोई फिक्र नहीं  है. मैं उस पेड़ के नीचे जब था तब भी मैं इतना  ही  खुश था और तुम्हारे राजमहल में रहा तब भी मैं इतना ही  खुश था और आज मैं तुम्हें छोड़कर जा रहा हूं तू भी मैं इतना ही खुश हूं। मैं कभी भी किसी भी स्थिति में दुखी नहीं राहत लेकिन तुम्हारा जीवन परिस्थितियों पर निर्भर करता है तुम्हारी परिस्थितियों कैसी है  उसके हिसाब से तुम जीते हो, जैसे -स्थिति खराब है  तो तुम दुखी हो जाते हो और परिस्थितियों अच्छी है  तो तुम खुश हो जाते हो. लेकिन हमें परिस्थितियों से  फर्क नहीं पड़ता। मेरी बांसुरी उस पेड़ के नीचे  भी इतनी सुरीली बजती , तुम्हारे महल में भी इतनी  ही सुरीली बजती और आज मैं जा रहा हूं तो भी मेरी बांसुरी इतनी ही सुरीली बजेगी। मुझे किसी भी स्थिति  में दुख या सुख नहीं मिलता ना मुझे इसका एहसास होता  है, मैं हर स्थिति में खुशी रहत हूं. यह बात सुनकर वो राजा सोचने लगा अरे कितने अनमोल को खो दिया मैंने  इतने दिन साथ में रहकर भी मेरे साधु की असलियत नहीं  जान सका. ये साधु तो हीरा निकाला इतने दिन साथ रह कर  मैं इसके साथ भजन कीर्तन भी नहीं कर पाया ,करता भी  क्या खाक मैं तो इसको ढोंगी समझ रहा था. लेकिन यह तो  बहुत ही अद्भुत आदमी निकाला ,यह सोचकर वो राजा साधु  के चरणों में गिर पड़ा और कहा के साधु बाबा मैं आपको जाने नहीं दूंगा तभी वो साधु कहते हैं सोच लो राजा यह  घोड़ा यही पर खड़ा है. मैं तो वापस चलूंगा लेकिन फिर तुम चिंता में पड़े रहोगे, फिर तुम दुखी हो जाओगे। यह  सुन कर उस राजा के मन में फिर वही विचार आया ,यह साधु  तो फिर से मान गया. यह तो फिर मेरे साथ चलेगा, भला यह  कैसा साधु है. लेकिन वह साधु राजा को देखते हुए बोला  लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि तुम कभी नहीं  सुधारने वाला मैं तुम्हारे महल नहीं चलूंगा बस तुम  खुश रहना, यह कहते हुए साधु बाबा वहा से चले गए और राजा  बस उसको देखाता ही र गया.


दोस्तों हमारे जीवन ने यह चीज  बहुत मायने रखती है की हम जैसे स्थिति होती है वैसे ही  हम हो जाते हैं ,जब परिस्थितियों खराब चलती है तो हम  दुखी हो जाते हैं, जब परिस्थितियों अच्छी चलती है तो  हम खुश हो जाते हैं. ऐसा लगता है जैसे हम अपने जीवन  को नहीं चला रहे, हमारी परिस्थितियों हमारे जीवन को  चला रहे हैं. आप अपने जीवन में जरूर अनुसरण करना इस  बारे में एक बार जरूर सोचना की आखिर ऐसा होता क्यों  है. यह तो हमको पता है की हमेशा हमारे पास अच्छी  परिस्थितियों नहीं चल शक्ति और यह भी हमें पता है  की हमारे पास हमेशा बुरी परिस्थितियों भी नहीं चलते  रहेगी ,अच्छी आई है तो बुरी भी आएगी और बुरी आई है  तो अच्छी भी आएगी। लेकिन फिर हमें दुखी और सुखी होने  का क्या मतलब क्योंकि परिस्थितियों तो बदलती रहती  है और हमें पता है की थोड़े दिन बाद यह परिस्थितियों  बादल जाएगी। लेकिन फिर भी हम दुखी और सुखी होते रहते  हैं और हमें कभी कभी यह भी लगता है की सुख के दिन  तो बहुत जल्दी गुर्जर जाते हैं दुख के दिन गुजरते  ही नहीं। सच्चाई तो यह है की हम दुख की तरफ ज्यादा  ध्यान देते हैं और सुख की तरफ कम ध्यान देते हैं,  इसीलिए हमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन में खराब  परिस्थितियों बहुत दिनों तक रहती है और खुशी वाली  परिस्थितियों बहुत कम रहती है। लेकिन यह बात आप अपने  जीवन में जरूर सोचना क्योंकि मैं हर कोई बात आपको नहीं बता सकता, आपको खुद इस चीज को अनुभव  करना होगा। तभी आप इस चीज को समझ पाओगे की हमारी  जिंदगी की परिस्थितियों हमें चला रही है या हम खुद  अपने जीवन को चला रहे हैं और यदि हम परिस्थितियों पर  निर्भर है तो हमारी खुशी और दुख दोनों ही दूसरों  पर निर्भर करता है. परिस्थितियों पर हमारा जीवन  निर्भर करता है तो कोई भी इंसान हमें दुखी या  खुश कर सकता है इसीलिए हमें हमारी परिस्थितियों  को समझना होगा हमें हमारी जीवन को समझना होगा। हमें  दोनों ही परिस्थितियों को एक ही नजर से देखना होगा  तभी शायद हम जीवन की असली पहचान कर पाएंगे 

उम्मीद  है दोस्तों यह कहानी आपको पसंद आई होगी 


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